पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२३७

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"यदि हुजूर तब पूछना भूल गई थीं तो अब सही। अब पृछ लीजिए | दबदबा उसी पर चला करता है जो दवता दबाता है। दबदबा चले तो घर की जोरू पर चले, जिसका भी अब जमाना नहीं रहा। अब जेरू खसम और ( विनोद से ) खसम जेरू । तैने ही एक बार जोरू बनकर उमर भर के लिये मुझे जोरू बना लिया ।"

“जन्म भर के लिये ही नहीं ! जन्मजन्मांतरों तक, भगवान् सदा ही मुझे आपकी दासी बनाए रखें । मैं जोरू और आप खसम ! अथवा कभी पलटा खा जाय तो आप जोरू और मैं खसम ! अथवा पारी पारी से ।"

"जैसी सरकार की मर्जी ! राजी हैं हम उसी में जिसमें तेरी रज्ञा है, याँ यों भी वाह वा है तो यों भी वाह वा है ।"

"और क्या यों नहीं-“है इत लाल कपेत व्रत, कठिन नेह की चाल, मुख सो आह न भाखियों निज सुख करे हलाल ।" और वह नेह भी बनावटी नहीं। बनावटी देह में तुरंत ही “चीनी में बाल" आ जाया करता है। दंपती का नेह अलौकिक होता है। यदि उसमें ईश्वर की सत्ता न हो तो प्राणनाथ की चिता में अपने प्यारे प्राण कौन होम दे । संसार में सबसे बढ़कर प्यारा प्राण होता है किंतु हिंदू नारी के लिये प्राओं से भी प्यारा प्राणप्यादा है ।" "हाँ बेशक !"

“हाँ बेशक नहीं मेरे प्रश्नों का उत्तर दीजिए ।"