पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२३९

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" ओहो ! तब इसके लिये आपको बहुत परिश्रम करना पड़ा , बछुत खर्च करना । तब इससे, विशेषकर इस' (खोलकर दिखाती हुई) सिंगरदान से और भी प्रेम बढ़ गया ।"

"प्रेम बढ़ते पढ़ते कहीं यहाँ तक न बढ़ जावे कि मेरा प्रतिद्वंद्वी खड़ा हो जाय, हिस्सेदार खड़ा हो जाय ।"

"जाओ जी ( लजाकर ) ऐसी बाते न करे ! हिस्सेदार बन जाय तो मुए को अभी तोड़ मड़ोकर फेंक दूं ।"

"नहीं नहीं ! सरकार नाराज़ न हूजिए। कुसूर इसका नहीं, मेरा है। जो सजा देनी हो मुझे दीजिए ! ताब्वेदार हाजिर है ।"

“आपको ! ( शर्माकर } आपको सजा ! आपको सजा यही है कि कृष्णचरित्र का कुछ रहस्य सम्झाइए। आपने ( चैदहवें प्रकरण में ) पहले एक बार, शायद मथुरा में, वादा भी किया था ।"

"हाँ ! उस समय बहुत हिस्सा समझाया था और अध्यात्म सुनाने का वादा भी किया था। जो जो बातें उस समय कही थीं वे तुझे भली प्रकार याद होंगी। उन्हें दुहराहे की आवश्यकता नहीं। अध्यात्म का नमूना श्रीमद्भागवत के "पुरंजनेपाख्यान में है। उसमें जैसे सारा किस्सा शरीर पर घटाया गया है वैसे ही विद्वान् सारे ही कृष्णुचरित्र को, रामचरित्र के मनुष्य के शरीर पर घटाते हैं । एक महात्मा ने "तुलसीकृत रामायण" की सारी कथा आदमी के