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प्रकरण-४८
श्री जगदीश का प्रसाद और अश्लील मूतियाँ

‘‘परंतु क्यों जी प्रसाद की तो यहाँ बहुत ही अवज्ञा है ! राम राम ! शिव शिव ! ऐसी अवज्ञा ? भगवान जगदीश का जो महाप्रसाद देवताओं को भी दुर्लभ है, जिसके लिये बड़े बड़े ऋषि मुनि तरसते हैं, जिसका एक कनका भीा भवसागर पार उतरने के लिये संतु हैं और जिनका माहात्म्य वर्णन करने.जिसका गुण गान करने में अपने इस्तारविंद पर रखकर महाप्रभु बल्र्लभाचार्यजी ने एकादशी के दिन दिन रात बिता दिए ये उसकी इतनी अवज्ञा ? उसका इतना अपमान । उसका इतना अनाचार ! घोर अनाचार हैं । बस हद हो गई ?'

"हाँ सत्य है ! यथार्थ है। वास्तव में केवल याद करने ही से रोमांच हेाते हैं । जो उसकी महिमा मूर्तिीमती होकर दर्शन देती हैं सब अलंद से और जब उनका अनादर सामने आता है तब दुःख से हृदय दहल उठता है, रोमांच हो उठते हैं। हम लेग यदि मंदिर में जाकर ही ले आए, ऐसे लाकर ही हमने अपना मन समझा लिया तो क्या हुआ ? यदि मंदिर में जाओ तो मंदिर में और बाहर फिरों तो बाहर, जहाँ जाओ वहाँ महाप्रसाद की गंध, जहाँ देखा वहाँ महाप्रसाद बिखरा हुआ पैरों से रौंदा जा रहा है। उसे तैयार करनेवाले