शरीर पर घटा दी है। “प्रबोधचंद्रोद्य" भी इसका नमूना है और “महामोहविद्रावा" भी ।"
“अच्छा तो थोड़ा सा और स्पष्ट कर दीजिए ताकि इन पुस्तक से टटोलने में सुगमता रहे ।" । “आनंद तो उन ग्रंथों के पढ़ने ही से आएगा, और उनके बताए रास्ते पर चलने से समझ में भी ठीक आ सकता है। हाँ थोंड़े में यह है कि उनमें अहंकार रावण और काम क्रोधादिक उसके राक्षस हैं और जीवात्मा हैं भगवान् रामचंद्र । बस उन्होंने सदगुणों की सेना की सहायता से अहंकारादि को विजय किया है ।"
"तब क्यों जी ! क्या भारत और रामायण की कथा मिथ्या है ? जब ऐसा ऐसा अध्यात्म ही भरा है तब उसे व्यास जी और वाल्मीकि जी की कल्पना समझना चाहिए ।"
"नहीं ! ऐसा कदापि नहीं ! अध्यात्म भी सत्य है। और कथा भी सत्य हैं। जैसा अधिकारी उसके लिये वैसा ही मसाला है । “पुरंजनेयाख्यान' लिखकर व्यास जी ने पंडित्तों को केवल नमूना दिखला दिया है, इसलिये कि पंडित यदि थोंड़ी सी मेहनत करें ते सारे भागवत का रहस्य समझ सकते हैं।"
“अच्छा तो अब मैं समझ गई । पर तु मुझे तो आपका अध्यात्म कुछ नीरस सा जान पड़ा ।"