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“बेशक नीरस सा ही हैं। छहों रसों को गड़बड़ करके खा जाने वाला जो महात्मा वेदांती और संस्कारल्यागी विद्वान् है उसके लिये भले ही सरस हो किंतु हम भक्त जनों के लिये नीरस !"

“हाँ सत्य है । सचमुच सरस तो हरिकथा है ।"

"बेशक !"

जिस समय दंपती की इस तरह बातें हो रही थीं कमला और इंदिरा, दोनों ही पास बैठे बैठे खेल रहे थे । कभी अपना खेल बंद करके दंपती की विनोद भरी बाते खुब ध्यान से सुनते, कभी इन्हें मुसकुराते हुए देखकर खूब खिलखिलाकर हँसते और कभी उस सिंगारदान पर अपना अपना दावा कायम करके "य मेरा !" " यह मेरा !" कहकर आपस में झगड़ते, नोचते और गुश्तसगुश्ता हो जाते थे। इस खैंचतान में काजल की डिविया खुल जाने से दोनों के हाथ काले हो गए, दोनों ने अपने मुँह पर सिंदूर पोत झाला और टिकुलियां की डिबिया खुलकर वे सब बिखर गई । बस अब आपस में आईने पर झगड़ा हुआ। एक ने दूसरे के हाथ से छीन लिया और दूसरा पहले के हाथ से छीनकर ले भागा। इस पर एक रो रोकर खूब चिल्लपों मचाने लगा। दंपती अपने ध्यान में ऐसे मस्त थे कि बालक की हरकत पर न तो उनकी नजर गई और न कान । अंत में पंडित जी ने कमलानाथ