पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२४५

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जाती हैं। हिंदूओं का यह कैटुंबिक कलह हिंदू समाज की दृढ़ भित्ति को कुदालें मार मारकर ढाह रहा है किंतु अब पंडित बंधुओ के संयुक्त कुटुंब में कलह कल म खाने के लिये भी नहीं । इसकी जाति में परक्षर की कलह होने के जो कारण हैं वे जब इनके घर में प्रवेश तक नहीं कर सकते तब कलह हो भी तो क्यों हो ? दोनों नारियाँ प्रति-सेवा में दत्तचित्त हैं । स्वप्न में भी पति की आज्ञा का, उनकी इच्छा का उल्लंघन करना वे जब घोर पाप समझती हैं तब उनको घर में अवश्य ही आनंद विराजमान है। सचमुच ही प्रियंवदा और अब उसकी शिक्षा से, उसकी देखा देखी सुखदा भी आदर्श बन गई है। भगवान् ने जैसी नीयत दी है वैसी बरकत भी दी है। इनके घर का हर एक काम धर्म के अनुकूल होता है । धर्म-विरुद्ध लाख रुपया भी इनके लिये विष है, बुरी चीज है, स्पर्श करने योग्य नहीं । जिनका सिद्धांत ही यह है---

"दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं पिबेजलम् ।।
शास्त्रपूर्तं वदेद्वाक्यं मनःपूत समाचरेत् ।।"

फिर इनके घर में सुख का निवास क्यों न हो ? ईशा-कृपा से इस समय सफलता इनकी चेरी और सुख इनका दास है। सुख की शोभा भी इसी में है कि वह ऐसे धर्मशील की चरणसेला में प्रवृत्त हो । केवल कल्पना के मनोराज्य में आना पाई से हिसाब देने की अथवा "हाथी के दाँत दिखाने के और और खाने के और"की तरह झूठ मूठ रिपोर्ट प्रकाशित करने