पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२४६

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की इन्हें आवश्यकता नहीं । अतिथिसत्कार के लिये, साधु महात्माओं की सेवा करने के लिये जैसे इनका दरबार खुला हुआ है वैसे इनके अनेक लोकहित के काम को, व्यापार धंधो को देखने का जनसाधारण को अधिकार है । जिस किसी की इच्छा हो इनके यहाँ आकर बारीकी से इनका काम देख सकता है और इनके अनुभव से लाभ उठा सकता है अथवा इनके कामों की नकल कर सकता है। यों इनके यहाँ दोनों बातों में छूट है। रोक टोक का नाम नहीं । देशी कारीगरी और देशी व्यापार की उन्नति के लिये इनकी राय यह है--

"सचाई का बर्ताव देना चाहिए। झूठ बेलकर अनाप सनाप नफा लेने से कम नफे में एक ही भाव पर चीज बेचना जितना आवश्यक है उतना और कुछ नहीं । केवल लेकचर. बाजी से काम नहीं चलेगा । जो कुछ करना हो उसे करके दिखला देना चाहिए ! मैं उसे बहुत ही नीच समझता हूँ जो व्याख्यान देकर गला फाड़ने में बहादुर है, जो औंरों के विलायती कपड़े उतरवाकर जला देने में शूर है किंतु स्वयं वार्ताव के नाम पर, बिंदी । औरों के भड़काकर उपद्रव खड़ा करना और यों हाकिम के नाराज करना अच्छा नहीं । जो शांतिपूर्वक दृढ़प्रतिज्ञ होकर काम करनेवाला है उसका अनायास अनुकरण होने लगता है। बस खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है। यही देश की उन्नति का मूल सूत्र है । कानफरेंस की धूम, लेकुचरों को गर्जन और आडंबर का ठाठ