पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२४७

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करके यदि अब तक इतना रूपया,समय और बुद्धि नष्ट न की जाती अथवा अब भी न की जाय तो देश का सौभाग्य है ।"

अतिथि-सेवा के लिये भी यह घर आदर्श है, सरनाम है और असाधारण है । “श्लाघ्यः स एको भुत्रि मानवाना, स अप्स; सत्पुरुष: स धन्यः । यस्यार्थिन वा शरणागत वा नाविभंगा विमुखाः प्रथाँतिं ।' का आप उदाहरण हैं । अतिथिसत्कार के लिये यदि परिश्रम उठाना पड़े, हानि भी क्यों न हो और द्रव्य चाहे जितना खर्च हो जाय यह मुख नहीं मोड़ते हैं। भूले भटके साधु गृहस्थों का सुपथ पर लगाना और ऐसे अच्छे अच्छे नमूने पैदा करना इनका काम है ।

सनातनधर्म की उन्नति और सामाजिक दुर्दशा का सुधार करने के विषय में इनके जो ख्यात हैं वे इस उपन्यास में समय समय पर, स्थान स्थान में कार्य रूप पर व्यक्त किए गए हैं। आवश्यक आवश्यक विषयों में से शायद् निकलें तो ऐसे विरले ही निकल सकते हैं जिनके लिये इन्होंने कुछ नहीं किया अथवा कहा न हो। हाँ ? समष्टि रूप पर इनकी राय यह है----

"हिंदू-धर्म, हिंदू-समाज संसार के यावत धर्मी का मूल है। दुनिया में जितने धर्म हैं उन सबके सवही अच्छे सिद्धांत, मूल तत्व इसमें पहले से विद्यमान हैं। केवल देखनेवाला चाहिए। "कौवा कान ले गया" की कहावत की तरह कौवे के पीछे मत दौड़े। पहले अपना कान सँभाल लो। तुम्हारे