पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२४८

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यहां सब कुछ है और जो कुछ हैं वह लाखों वर्षों के अनुभव से अनुकूल सिद्ध हो चुका है। पशयों की नकल करके अपने ही हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के बदले प्राचीने के सुमार्ग पर चलने ही में तुम्हारा कल्याशा है। जहाँ कहीं थोड़ा बहुत अंतर पड़कर समय के प्रतिकूल दिलाई है वहाँ शास्त्र के अनुसार, वृद्धों की सम्मति से ठीक कर लो । परायों की नकल करना अच्छा नहीं है। अन्य देशों की सभ्यता में जो जो तुम्हें चमकदार दिखलाई देता हैं इस सबको ही सेना समझना तुम्हारी भूल है । परदेशियों के ऐसे सद्गुणों की नकल करे। जिनमें तुम्हारे भारतवासीपन पर, हिंदूपत पर अधात न पहुँचे । पुराने और नए ख्यालों की दलादली कदापि न बढ़ने दो । जिन बातों के विषय में पुराने और नए का मत-भेद हो उन्हें मत छेड़ो । उनके लिये पहले शास्त्रों का मनन करो किंतु जो निर्विवाद हो उनमें एकमत हेना, परस्पर के मत-भेद को निकालकर पुराने और नए समाज यदि एक सूत्र में बंध जायँ, अनेक जातीय सभाएँ स्वतंत्र रूप से चलने पर भी उनका केंद्र एक हो जाय और एक ही उद्देश्य को लेकर वे सब कार्य करे तो उन्नति सहज में हेर सकती है। धर्मसभा और आर्यसमाज सुधारक और उद्धारक का अधिक समय आपस' के लड़ाई झगड़े में, एक दूसरे को नीचा दिखाने में जाता है । ब्रिटिश सम्राज्य की छत्र-छाय में, उन्नति के सुअवसर पर एकता बढ़ने के बदले फूट फैलती