पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२५१

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और अपने सदाचार का बल है तब उनके कथन का, उनके कामों का औरों घर अच्छा असर पड़ता है हो तो आश्चर्य करता ? क्योंकि यह उन लोगों में से नहीं हैं जो: -

परोपदेशे पंणितडत्थं सर्वेष सुझर नृाणाम् ।
धम्र्म स्वीथमनुन कस्यचित्सुमहान्यः ।।"

इस लोकोक्ति में “पूर्वाद्ध" के अनुयायी है। औरों को वही झुका सकता हैं जो पहले स्वय” झुकता है। दुनिया ऐसे ही सज्जन के हाथ से झुकने को तैयार है जो करके दिखा देता है। संसार के इतिहास में उसका ही आदर है, वही पूजनीय देवता है। हमारे अवतार इसी लिये ईश्वर हैं और प्राचीन ऋषि मुनि देवता । ऐसे महात्माओं के एक दो नहीं हजारे ही चित्र हमारे पुरणों में हैं, इतिहासों में हैं और जो इनमें नहीं हैं वे परंपरा से धरोहर में प्राप्त जन समुदाय के हृदय-मंदिर में हैं। केवल उनसे लाभ उठानेबाला चाहिए,और वह पंडित जी की तरह भगवान् के चरण कमलों में सच्ची लो लग जाने से प्राप्त हो सकती है । पंडित जी का चरित्र वास्तव में हिंदू-समाज का आदर्श है । लेखक की कल्पना ने जैसा गढ़ा है वैसे अनेक पंडित जी के पैदा होने की आवश्यकता है । पंडित जी अपने मन में---

“निशिवासर वस्तु विचारहि के, मुख साँच हिए करुण धन हैं । अघ निग्रह संग्रह धर्म कथानि, परिग्रह साधुन को गन है ।।