पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२४३)

कहा केशव भीतर जोग जगै, अत्ति बाहिर भोगिन सो तन है । मन हाथ सदा जिनके तिनकों, बन ही घर है घर ही बन है।।" इनके अनुयायी है--

"अजरामावत, प्राज्ञो विघामर्थ'च चिंतयेत् ।
गृहीत इव केशेषु भूत्युना धर्ममावरेत् ।।"

यही उनका मोटो है । लेखक के मनोराज्य में ऐसे ही पंडित जी ने निवास किया है और ऐसे ही हिंदू को "आदर्श हिंदू" की पदवी प्रदान होती है ।