पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२९

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भी विद्वान् और सदाचारी ब्राह्मण हो किंतु भांस मछली खानेवाले के मुके स्वभाव में घृणा है किंतु मैंने सुना है कि जो महाप्रसाद बनाने का काम करनेवाले हैं उन्हें तीन दिन पहले से मछली का त्याग करना पड़ता हैं। मेरी समझ में पाचकों का वेतन बढ़ाकर उनके कुटुब में धर्मशिक्षा का प्रचार करके ऐसे पाचको को नियत करना चाहिए जो इस कुकर्म से सक्षा ही बचे रहना अपना कर्तव्य समझे ।

"हां ठीक है, परंतु फिर ?

जैसे पाचक सदाचारी हो वैसे ही भगवान् के भोग लागनेवाले भी हो। उनका स्पर्श किया हुआ नैवेग हम लोग करके, अपने अपने आचार के अनुसार पवित्र होकर यदि भोजन करे तो इसमें प्रसाद का आदर बढ़े और अचार की रक्षा भी है ।"

“तब इस तरह से हम उस महाप्रसाद के अपने घर ले आवें तो इसमें कुछ हानि नहीं ? रस्ते चला हुआ ??"

“नहीं ! कुछ हानि नहीं । हम अपने प्रचार के अनुसार लाकर पा सकते हैं ! यह हमारे हाथ में है कि मार्ग में किसी से स्पर्श न होने दें ।"

“और हमारे खाने के अनंतर पत्तल में उच्छिष्ट रहे। जाय तो ?"

“हम उच्छिष्ट रहने ही क्यों दे? और रह जाये तो उसके लिये अंत्यज हैं ! हमें फेक न देना चाहिए ।

“अच्छा महाराज ! ऐसा ही करेंगे । परंतु एक बात