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प्रकरण-४९
समुद्र स्नान की छटा

आज इन लोगों को पुरी में आए ठीक दस दिन हो गए । शरीर कृत्य, स्नान् संध्यादि और खाने सोने के सिवाय इनका सारा समय जगदीश के दर्शन ही में व्यतीत होता है । ये लोग दिन रात भक्तिरसामृत का पान करते तो हैं किंतु अधाते नहीं । इनकी इच्छा नहीं होती कि श्री चरणों के छोड़ कर घर का नाम ले ! इन्होंने यहां आकर पुरी के यावन् तीर्थों का स्नान कर लिया,समस्त मंदिरों के दर्शन कर लिये और हमारी इस पंडित पार्टों ने श्री जगदीश-माहात्मय भी चित्त की एकाग्रता के साथ सुना । माहात्म्य श्रवण करने में इस पार्टी के अतिरिक्त वे दो यात्री और भी संयुक्त हो गए थे। पंडित जी और गौड़बोले विद्वान थे । “धृताधारे पात्रं वा पात्राधारे धृतं" करनेवाले शुष्क नैयाधिक नहीं,वेदांत की फक्किकाएं रट रटकर माथा खाली कर देनेवाले और संसार को तुच्छ समझ- कर,अकर्मण्य हो जानेवाले वेदांती नहीं,साहिय शास्त्र का मथनकर बाल की खाल निकालने के साथ केवल प्यारी के,नायिका के चरणों में लोटनेवाले रसिक वनकर कुएं के मेंढक बननेवाले साहित्य -चार्य नहीं,अश्विनी,भरणी और कृत्तिका तथा मीन,मेष,