पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/३६

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वृष का अँगुलियों की पोरों पर योंही अटरम सटरम गिनकर यजमान की प्रसन्नता के लिये मिथ्या मुहूर्त बतानेवाले ज्योतिषी नहीं और प्रश्नकर्ता की इच्छा के अनुसार हां में हां मिलाकर कभी स्याह की सफेद और कभी सफेद की स्याह ब्यवस्था देकर व्यवस्था की मिट्टी खराब करनेवाले धर्मशास्त्री नहीं और सबसे बढ़कर यह कि व्याकर के बल से बेद मंत्रों का अर्थ बदलकर, उनमें जो अश अपनी राय के प्रतिकूल हो उसे जो क्षेपक बतला कर वेदों में रेल और तारों का सब्ज बाग दिलाने वाले आजकल की नई रोशनी के पंडित नहीं । ये लोग ऐसे पंडितों के कार्यों पर घृणा करते थे और इनकी दुर्दशा देख देखकर दुःखित भी कम नहीं होते थे । इसमें संदेश नहीं कि पंडित जी की थोड़ी और बहुत गति सब शास्त्रों में थी और जितना उन्हाने पढ़ा, जितना उन्होंने भनन किया वह सार्थक था। केवल इतना ही क्यों ? वह अंगरेजी के अच्छे विद्वान् थे और भारतवर्ष की प्रचलित प्रायः समस्त प्रांतीय भाषाओं का भी ज्ञाने उन्हें कम नहीं था ।।

बस इनको ऐसा विद्वान्, ऐसा गुणवान् देखकर उन दोनों यात्रियों ने समझ लिया कि जहाँ तक बन सके इनसे पूछ पूछकर अपने संदेहे के निवृत्त कर लेना चाहिए । इसी उदेश्य से जब तक पंडित जी पुरी तरह से रहे उन्होंने इनका पिंड न छोड़ा । उन्होनें समय समय पर सवाल पर सवाल पूछे और जो पूछे उसका संतोषजनक उत्तर पाया । उन यात्रियों