पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/३७

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का नाम हरिभक्त और बानीराय था । देनों ही राजपूताने में मारवाड़ के रहने वाले वैश्य थे । अन्यान्य प्रश्नों के साथ का एक प्रश्न ऐसा था जिसका संक्षेप से यहां उल्लेख कर देना चाहिए । “श्री जगदीश माहात्सय" सुनकर उन्होंने पंडित जी से पूछा---

"महाराज, पुराणों में ऐसी असंभव बातें क्यों भर दी गई है जिन्हें सुनकर शिक्षित समुदाय उन्हें कपोल कल्याण समझ रहे हैं?"

“नहीं ! कपोलकल्पना बिलकुल नहीं । उनका अचार अक्षर सत्य हैं । जो बात अपनी समझ में न आये उसे मिथ्या वतल देना मूर्खता है, सूर्य पर धूल फेंकना हैं। पुराणों में दो प्रकार की कथाएं हैं । जो लोगों को असंभव मालूम होती है उनमें अध्यात्म है । भागवदाज्ञा में “पुरजनोपाख्यान" इसका नमूना है। वेद भगवदाज्ञा है,संसार के लिये एक ऐसा कानून है जिसका कभी परिवर्तन नहीं और पुरात उसके दृष्टटांस हैं,उदाहरण हैं,हाईकोर्ट की सी नजीरे हैं ! माता के स्तनों पर बालक भूख लगा पय पान करता है। किंतु वह जोंक के लगने पर दूध के बदले रक्त निकलता है । यह बात जुदो है, किंतु जो बाते उनको आज असंभव दिखलाई देती हैं वे समय पाकर संभव भी तो सिद्ध हो रही हैं । जैसे आजकल बेलुन ने सिद्ध कर दिया कि देवताओं के विमान सच्चे थे । हमारे शिक्षित समाज में सबसे प्रबल दोष