पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२९)

यह है कि जब तक पश्चिमी विद्वान् उन्हें न समझावे कि तुम्हारे शास्त्रों में अमुक बात अच्छी है तब तक वे उस अच्छी को भी बुरी मानकर उससे घृणा करते हैं, उसकी निंदा करते हैं और पानी पी पीकर उसे कोसते हैं । "

“हाँ महाराज सत्य है । अब हमारी समझ में आया । आप ठीक कहते हैं ।” ये कहकर उन्होंने पंडित जी का पिंड छोड़ा। तब से उनका इस किस्से से संबंध नहीं रहा और न इसलिये उनके विषय में कुछ लिखने की आवश्यकता रही । अस्तु अब पंडित जी प्रभृति यहाँ के देवदर्शनों से विभृत हो गए । अब उनके लिये केवल एक ही काम शेष रह गया। उस कार्य के भी उन्होंने समय निकालकर कभी का निफट लिया होता परंतु जब शास्त्र की आज्ञा है कि पवणी में बिना समुद्र स्नान नहीं करना चाहिए तब उन जैसा धार्मिक यदि पर्वणी की राह देखता हुआ वहाँ ठहरा रहे तो इसमें प्राचरज क्या ? फिर जितने दिन अधिक ठहरना हो उतना ही पंडित जी का लाभ और पवर्शी को भी अधिक दिन नहीं फिर यदि उसके साथियों ने शीघ्र चलने को तकाजा भी किया तो वह समुद्र-स्नान का लाभ छोड़नेवाले व्यक्ति कहाँ ?

खैर ! आज कार्तिक कृष्णा अमावस्या है। दिवाली से बढ़कर परव कौन है ? आज शीध्र ही उठकर ये लोग स्नान संध्या से निवृत्त होकर श्री जगन्नाथ जी की मंगला की झांकी करने के अनंतर समुद्र में गोता लगाने गए । और तीर्थों की