पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/४०

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है । क्षमा ही की बदौलत सागर जैसा बलवान पड़ोसी उस पर आक्रमण पर आक्रमण करते रहने पर भी उसकी एक अंगुल जमीन नहीं ले सकता । जो मुठभर्दी से छीन लेता है उसे उसके भख मारकर ब्याज कसर के साथ लैादा देना पड़ता है ।।

'समुद्र के किनारे खड़े होकर पंडित जी के मन में ये ही भाव पैदा हुए और, इस तरह जो उन्होंने पाया उसे कंजूस के धन की तरह छिपाया नहीं । जो कुछ पाया उसे औरों को दे दिया किंतु विद्यादान, शिक्षादान जैसे औरे के देने से बढ़ता है वैसे ही पंडित जी के अनुभव के खजाने में भी एक की वृद्धि हुई ।

अस्तु ! यहाँ और विशेषकर झाटे के समय स्नान करना हँसी खेल रहीं। समुद्र-राज्य और ऐसे एकांत को याद करके प्यारे पाठक यह ना समझलें कि दंपती ने मैदान पर खूब जलविहार किया होगा, खूब हेलियाँ खेली होगी । जहाँ जल में घुसते ही लहरों के जोर से पैर तले का रेला खिसकता है, जहाँ दस पंद्रह हाथ' की मोटी लहर स्नान करनेवाले के माथे पर हाथ फेरती हुई उसे जलमग्न करके किनारे की ओर ढकेलती और आदमी को चित्त गिरा देती हैं वहाँ यदि प्रियंबदा डर के मारे जल में घुसने से धबड़ाती है। तो आश्चर्य नहीं। बड़ी देर तक समझा बुझाकर उसका भय छुड़ाने के अनैतर किनारे से कोई पाँच छः हाथ आगे बढ़कर उसने स्नान किया और तब भीगे हुए कपड़े के इधर उधर से खैंचकर अपनी लज्जा छिपाती हुई वह मथुरा की घटना याद करके