पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/४५

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में लाकर प्रकृति के उपासकों का, जिनका स्वास्थ्य की रक्षा करना ही परम कर्तब्य है, इसने जी ललवाया है। आठ मास तक पसीमा झार परिश्रम के अनंतर ग्रीष्म ऋतु में भगवान् भुवन भान्कर की उग्र मयूखों से बचने के लिये अनेक युरोपिया नर नारी सागर तटवर्ती बँगले में निवास करते हैं । कितने ही सजने में क्षय -पीड़ित मनुष्यों का स्वास्थ्य सुधारने के लिये एक “सेनीटोरियम" भी बनवा दिया है और लोग कहते हैं कि थोड़े ही काल में जब यहाँ युरोपियन अफसरों के ग्राम निवास बन जायगा तब नगर की सारी गंदगी निकल जायगी ।।

यदि इस तरह गंदगी निकल सके तो अच्छी बात है किंतु इन बातां को देखते हुए भी पंडित जी से वहाँ के दो तीन सौ केढ़ियों की दुर्दशा देख देख कर आंसू बहाए बिना नहीं रहा जाता । अभी वह जगदीश के दर्शन का आनंद लुटले हुए वियेाग से दुःखित होकर आंसू बहाते और “बाबा फिर दर्शन दीजिए" की विनय सुनाते हुए मानों आज अपना सर्वस्व खोकर घर को जाते हो, इस तरह उदास मुख से, खिन्न मन होकर आए हैं। सुर दुर्लभ महाप्रा पर जाने अनजाने यदि पैर पड़ गया हो, यदि भूल से अथवा जान बूझकर अवज्ञा हुई हो अथवा किसी तरह का अनाचार या पाप हुआ हो । उसकी निवृत्ति के लिये समुद्र में स्नान कर आए हैं । अब भोजनादि से निपटकर असबाब बाँधना और जगदीश के पंडे