पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/४६

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शितिकंठ महाशय के भेट देकर केवल उनसे बिदाई लेना और गाड़ी पर असबाब रत्नाकर देशन के चलना अवशिष्ट है ।पंडे महाराज भी उनके समीप हो विराजमान हैं। गुरूजी का वाला कृष्ण वर्ल्ड, सुदीघ काय, बड़ी बड़ी आंखें और छोटा का चेहरा, बस यही उनका रूप रंग है । उनके सिर पर अनारस का घना जरीदार रेशमी साफा उनले काले मुखारविक्ष पर अपने नीले रंग के साथ साथ जरी की झलक दिखाकर अजय बहार दे रहा है । भीतर सूती वनयान और ऊपर मलमल का कुरता, कमर में धोती और हाथ में पाने का बटुवा, बस ये ही उनके वस्त्र हैं। एक नौकर की बगल में दो तीन बहियाँ, हाथ में दावात कलम और दूसरे के पास कंठी, प्रसाद और भगवान् के चित्र, बस यह सामग्री उनके साथ है । उगुरू जी में यदि सबसे बड़ा गुण देखा ते यह कि उनमें विशेष लोभ नहीं हैं। वह न तो किसी यजमान का जी मसोस्कर वैसा माँगते हैं और न पैरों की भाँति पाई पाई पर मुख चीरते हैं। थोड़ी बहुत हठ करना,उनका पेशा हैं। इतना भी न करें ते कदाचित् यात्रा उन्हें अँगूठा दिखाने के तैयार है। जाय किंतु उन्हें परिणाम में जितना मिल जाय उसने ही पर संतोप है। आज भी उन्होंने पंडित जी के अटका चढ़ाने का परमर्श दिया, करमाबाई की खिचड़ी के लिये सल्लाह दी और इसका अक्षय पुण्य