पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/४८

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थे । आप ऐसा आशीर्वाद दो जिससे उसके चारविदों से हमारा मन अलग ना हो अलग न हे ।"

"हाँ यजमान ठीक है । परंतु अटके और खिचड़ी का कुछ प्रश्न अवश्य होना चाहिए। इससे अधिक नाम होगा ।"

"महाराज, अटका खिचड़ी ते ठीक ही है। हमने भक्तशिरोमणि' करमावाई और मलूकदास बाबा के दर्शन के लिए । महाराज विश्वंभर को भरने कई किसी में सामर्थ्य नहीं इसलिये यदि आप उचित समझे', यदि आप प्रसनता से आज्ञा दे तो मेरे मन में एक नया विचार उत्पन्न हुआ है। आशा है कि आप अवश्य स्कावीर करेंगे । मेरी राय यह हैं कि इस अटके और खिचड़ी में जितना द्रव्य लगता है उतना ही अथवा उसले मेरी शक्ति भर कुछ अधिक द्रव्य अलग रखें, इसमें आप भी अपने पास से यथाशक्ति कुछ देकर, अपने यात्रियों को दिलाकर, अन्यान्य पंडों के उतेजित करके इसी तरह अच्छी पूँजी इकट्ठी कर लें । जितने यात्री यहाँ आते हैं सबको समझाकर इस कार्य में सहायता लें तो इन कोढ़ियों के रहने के लिये छाया का मकान, पहनने ओढ़ने के लिये कपड़े, भेाजन के महाप्रसाद और इलाज तथा सेवा शुश्रूष्का के लिये योग्य वैद्य और परिचारक मिल सकते हैं। ऐसी सेवा शुश्रुपा से इनके दैहिक कष्ट कम होंगे, महाप्रसाद से इनका अंत:करण विमल होगा और तब प्रभु चरणों में ले जाने से इनका उद्धार होगा ।"