पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/५५

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गवान करते हुए तुम्हारे नाम के साथ मिलनेवाले का अँगूठा अँगुलियों की पोरों पर न पड़ा तो तुमने झख यार, योहों अपनी माता के नौ महीने तक असह्य वेदना दी, तुम्हारे लालन पालन में वृथा ही उसने पीड़ा पाई और तुम्हारा खिलाया, पिलाया, पढ़ाया, लिखाया सव फिजूल गया ।" माता उनकी चाहे पढ़ी लिखी न हो किंतु पति के साथ, पुत्रों के साथ, पड़ोसियों के साथ और नौकर के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए घर गृहस्थी में रहकर क्योकर अपनी बात निवाहनी होती हैं और स्त्री शरीर धारण करके उनका कर्तब्य क्या है, इन बाते को वह अच्छी तरह जानती थीं और सदा इन्हों के अनुसार चला करती थीं । चारी, व्यभिचार, मिथ्याभाष आदि बुराइयों से उसे पूरी घृणा थी और वह सदा इसी विचार में रहती थी कि कहीं मेरे नन्हें में ऐसे ऐसे ऐध न पैदा हो जायं । यद्यपि अपनी जन्मदात्री माता का सुख इन दोनों भाइयों के नसीब में नहीं था क्योंकि वह देने ही के बिलबिलाते छोड़कर छोटी उम्र में चल बसी थी किंतु जब बूढ़ी दुलरिया ने ही इनको पाल पोसकर इन गुणों से भूषित कर दिया तब उसे माता से भी बढ़कर इन्हें समझना चाहिए क्योंकि अपनी असली माता के जो गुण इन्हें धरोहर मिले थे उन पर बुढ़िया ने ओप चढ़ा दिया । ऐसे सज्जन माता पिता की संतान होने पर भी, सदा भाई भाई के संयुक्त रहने की सलाह देने पर भी, संयुक्त कुटुंब के