पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/६०

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खैर ! वह इस तरह से चुप हैं तो रहने दीजिए किंतु जब मथुरा इन दोनों के पीछे पड़ी है तब बह चुप कैसे रह सकती है। आज उसे अकस्मात् माला भी अच्छा मिल गया । इनकी एक पड़ोसिन ने भोर ही पनघट के कुँए पर बस्ती के बाहर जल भरते भरते दस बारह पनिहारिनों के सामने मथुरा से कहा--“वीर । आज रात के हमारे पड़ोस में न मालूम धमाका किसका हुया था ? ऐसा धमाका कि मैं तो भरी नींद में चौक पड़ी । निपूती तब से नींद भी न आई ।" बस इसका यह मतलब निकाला गया कि पति ने मारकर अपनी जोरू के कुँए में गिरा दिया अथवा पिटते पिटते धबड़ाकर वही कुँए में गिर पड़ी ।बस बिजली की चमक की तरह घंटे भर में यह बात सारी बस्ती में फैल गई। इस पर खूब ही रंग चढ़ा, यहाँ तक कि थाने में रिपोर्ट करने लेग दौड़े गए । तीन मील चलकर एक साहब पंडित प्रियानाथ को तार देने दौड़ गए और कितने ही महाशय इस बात का भेद लेने के लिये, कई एक कांतानाथ से सहानुभूति करने के लिये और बहुत से नर नारी तमाशा देखने के लिये पंडित जी के मकान के द्वार पर इकट्टे हो गए । बस पंडित प्रिशयानाथ के पास पुरी से बिदा होते समय जो तार पहुँचा था वह उन्हीं साहब का दिया हुआ था । तारबाबू ने कतिनाथ के नाम से दिया हुआ तार दूसरे के हाथ से लेने में थोड़ी बहुत हुज्जल भी की थी किंतु पंडित जी