पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/६१

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से उसका इसने और यह उनके घर का मामला, इसलिये वह तार रो कना सका । ज़ी तार को पढ़कर उन्होंने दक्षिण यात्रा बंद कर दी उसमें लिखा था----

“मेरी स्त्री कुँए में गिरकर मर गई । जुड़ी भारी अफर है। मार डालने का इलज़ाम मुझ पर लगाया गया है । फौरन आओ ।"

स्टार को पाकर पंडित जी ने क्या किया, इससे उनकी दशा क्या हुई,सो गत प्रकरण में लिखा जा चुका है। हाँ उन्होंने जब अभी तक यह नहीं बतलाया कि तार को पढ़कर उनके मन में क्या बात पैदा हुई, उन्होंने इस तार की सच्चा समझा है अथवा नितांत मिथ्या, और जब केवल अटकल लगाने के सिवाय उनकी श्रद्धांगिनी प्रियंवदा तक उनके मन का भेद नहीं जान सकता है तब जब तक वह अपने मुँह से न कह से कौन कह सकता है कि उनके घबराहट केवल इन तार का पाने से थी अथवा श्री जगदीश के चरणों के वियोग से वह ब्याकुल थे। इनमें से कोई एक बात भी हो सकती है और दोनों संयुक्त भी ।

खैर ! इस यात्रापार्टी का अभी इस उधेड़बुन में पड़े रहने दीजिए, यदि पंडित जी अपनी धुन में सवार होकर रेल में सवार हुए अपने घर की ओर आ रहे हैं तो आने दीजिए किंतु अब भी उनके पिता के उपकारों को याद करके, उनके आंतक से डरकर और कांतानाथ की लात से घबड़ाकर