पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/६५

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"अच्छा ! उसी रिश्ते से आज आप अपनी बहन को यह नेग देने आए हैं। बड़ी इनायत की ।" इस पर दीवान जी कुछ झेपे । उन्होंने अपने मन को संतुष्ट करने के लिये एक औरत भीतर भेजी परंतु जब उसने भी भीतर के आकर यही उत्तर दिया--... हां पंडित वृंदावनविहार की बेटी और इनकी बहू सुखदा है ।" तब शर्माते हुए---"आपको तकलीफ हुई । मुआफ कीजिए। मैं मजबूर था। मैंने अपना फर्ज मसनवो वादा किया और सो भी इस बदमाश के रिपोर्ट करने पर ।" नहीं कुछ हर्ज नहीं । आपका कोई कसूर नहीं । लेकिन लाला जी तुम तो मिठाई लेते जाओ ।" कहकर कांतानाथ ने रिपोर्ट देनेवाले की खूब गत बनाई और इस तरह जब भीड़ हट गई तब भीतर जाकर "मैंने खूब काम किया ! शाबाश ! आज से तेरे सब अपराध क्षमा । भाई से पूछकर और अंगीकार ।” कहते हुए वह दबे पांव बाहर निकले और इस घटना का पूरा हाल सुनकर दौड़े हुए तारधर पहुँचे । वहाँ पहुंचकर उन्होंने संक्षेप से बड़े भैया का तार दिया और तब घर लौटकर भोजन किया ।