पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/६८

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साँस खैंचकर सारी बातें सुनीं । बेशक उनका इरादा नहीं था कि वे इनकी बातों में जाकर दखल देते किंतु मथुर का नाम आते ही इनका क्रोध भड़क उठा। इन्होंने ज्यो ज्यो रोका त्यो त्यो वह अधिक अधिक ज्वाला छोड़ने लगा । किवाड़ के एक ही धक्का देकर खोलते हुए गुस्से से लाल लाल होकर यह भीतर घुसे । इनकी विकराल मूर्ति देखकर सबके होश उड़ गए। वे सब की सब भागी और ऐसी भागी कि किसी का रूमाल गिर गया, किसी का बटुआ गिर पड़ा और यहाँ तक कि किसी की पायजेब निकल गई । इनमें से दो एक उलझ उलझाकर गिर भी पड़ों और एकाध का सिर भी फूट गया किंतु इस भाग दौड़ में मथुर की चोटी इनके हाथ आ गई। वह उसे खैंचकर उसकी लातों से पूजा करने ही वाले थे । उसकी गत बनने में कुछ कसर बाकी नहीं थी । क्रोध बहुत बुरी बला है। हृदय में उसका प्रवेश होते ही बुद्धि भाग जाती है, ज्ञान का नाश हो जाया करता है । इसी लिये अनुभवी विद्वानों ने इसको भूत की उपमा दी है। वास्तव में यदि क्रोध का भूत सवार हो जाने से पंडित जी उसके एकाध हाथ मार बैठते तो जाता । वह चाहे जैसी पापिनी क्यों न हो, उसने इनका कितना ही अपकार क्यों न किया हो किंतु स्त्री जाति पर हाथ उठाना घोर अनर्थ है । खैर किसी तरह के पाप कर्म में प्रवृत्त होते समय जैसे मनुष्य का अंत:करण, उसकी बुद्धि मन का हाथ पकड़ लिया करती है,