पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/६९

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जैसे एक बार हुआ ऐसा काम ना करने की चि देती है वैसे हो उनके मन के बस लेते हुए, चौकड़ी भरते हुए घोड़े की बाग उसने पकड़ ली । जूते समेत लात और घुसा बंधा हुआ हां क्यों नहीं उठाया तो सही किंतु एकदम कुछ विचार आते ही संभले और इसके शरीर की और देखते ही इनका क्रोध दया में बदल गया---

"राम राम! बढ़ा अनर्थ हो जाता !जाने दो रोड को! परमेश्वर इसे दंड दे रहा है। इससे भी बढ़कर देगा । इसके शरीर में कोढ़ चू उठा। इससे बढ़कर क्या दडं होगा!" कहते हुए इन्होंने अपना हाथ और पैर अमित लिया और वह भी समय पाकर अपनी जान लिए हुए ऐसी भगी कि मुदत तक उसकी शकत भी न दिखलाई दी । कोई वर्ष दो वर्ष के अनंतर यदि वह दिखलाई भी दो तो कोढ़ के मारे उसकी अँगुलियाँ गल गई थीं। तमाम' बदन फूट निकला था । मक्खियाँ काट काटकर उसे कल नहीं लेने देती थी और दुर्गंध के मारे किसी से उसके पास होकर निकलना तक नहीं जाता था । खैर उसने जैसे किया वैसा पा लिया। जो बबूल बोता है उसे काटा ही मिलते हैं, आम नहीं। इन लोगों की भलाई है कि उसके इतने अपकार का बदला उन्होंने उपकार में दिया। जब तक उसके शरीर में प्राण रहे उसके पापी प्राण वास्तव में बड़े ही घोर कष्ट भोग कर निकले, उन्होंने उसके खाने-पीने, पहनने ओढ़ने का