पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/७२

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अस्तु, अब उक्त प्रश्नों से उनके अंत:करण को दबाया । अब देवदर्शनों में काम काज में वह लोगों से मिलने लगे । जिनसे राह में भेट होने पर वह कतरा जाया करते थे उनले खड़े होकर बातचीत करने लगे । कान लगा लगाकर इधर उधर की बातें सुनने लगे । परिणाम इसका यह हुआ कि इनके प्रश्नों का इन्हें यथार्थ उत्तर मिल गया । इन्होंने निश्चय कर लिया कि बदनामी करनेवाले की बदनामी है। लोग उन्हीं के जीवन पर थूकते हैं, यहाँ तक कि जे तार देनेवाला था तथा जिसने पुलिस में रिपोर्ट की थी उन्हें कोई भला आदमी पास बैठने नहीं देता है । जहाँ ये लोग जाते हैं वहीं से दुतकारे जाते हैं। यदि यह घटना न होती तो शायद लेागों के मन पर' कतिनाथ की, उनकी सुखदा की बुराहयां बनी रहती किंतु कपड़े की मैल जैसे धोबी की भट्टो में पड़कर उबाले जाने से निकल जाती है वैसे ही इस घटना ने दंपती के चरित्र को स्वच्छ कर दिया, उज्ज्वल कर डाला, यहाँ तक कि इस घर की सज्जनता देखकर जो लोग इनकी बदनामी उड़ाने में थे वे अब पछताते हैं, कितने हो लजा के मारे इन्हें मुंह नहीं दिखाते और कितने ही इनसे क्षमा माँगने को तैयार हैं ।

लेागां का यह ढंग देखकर दो तीन अदमियों ने इनको यहाँ तक सलाह दी कि "ऐसे बदमाशों पर नालिश ठोंककर उन्हें सजा दिलानी चाहिए ताकि आगे से किसी भले आदमी की इज्जत बिगाड़ने की किसी की हिम्मत न हो ।" दस बीस