पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(७५)

"बाल बच्चा क्या है ?

"अभी से ? अभी तो मेरी शादी में नहीं हुई ।"

"अच्छा मैं समझी ! क्षमा करना ! तब ही आप वार बार अपने प्यारे की यादगार निरख निरखकर मुसकुरा रही हैं। बहन, तुम भले ही बुरा मानो । मेरा स्वभाव मुंहफट है । इधर रेनाल्ड की प्रेम कहानियाँ पढ़ना, प्राणप्यारे की अँगूठी धारण करना, उसे बारंबार निरखना और उधर अब तक शादी न करना ! तुम ही सोचे । यह स्वतंत्रता कहाँ तक अच्छी है ? यही विवाह के पहले गौना है । आग और पास रहकर न पिघले यह हो नहीं सकता और एकांत में मिले बिना प्रेम परीक्षा काहे की ?"

“अच्छा तो (कुछ झेपकर) आपका प्रयेाजन यह है कि यह स्वतंत्रता ते बुरी और दिन रात घर के जेलखाने में जेवर की बेड़ियाँ डाले चक्की चूल्हे से माथा मारते रहदा अच्छा है । हमारे देश में वास्तव में स्त्री जाति पर बड़ा अत्याचार हो रहा है। वे या त केवल बच्चा देने के काम की हैं। अथवा अपने आदमी की गुलामी करने के । जिस देश में पति की जूठन खाना भी धर्म, उसकी लाते' खाना ही प्रेम, जहाँ पढ़ने लिखने का द्वार बंद और जहाँ अपने आदमी को पहचानने से पहले ही गुड़िया गड्ढे की तरह शादी हो जाती हैं, जहाँ विधवा विवाह घोर पाप माना जाता है वह देश कभी नहीं सँभलेगा, दिन दिन गिरता ही जायगा और इसके