पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(७६)

पाप का बोझ है हमारे शास्त्रकारों पर है, हमारे बूढ़े खुर्राटों पर है। और देश का अवश्य ही दुर्भाग्य समझना चाहिए कि हाल की पाई पोद में जो आदमी पैदा होते हैं वे उनसे भी गए बीते। खेद है! अफसोस है अफसोस है ! अनर्थ है! राम राम!"

“हाँ ! ठीक हैं ! आपके फर्माने का मतलब मैं अभी तक यही समझी हूं,मैंने यही परिणाम निकाला है कि आप स्त्रियों को पुरुषों के समान अंग्रेजी की उच्च शिक्षा दिलाना पसंद करती है, पर्दे का पर्दा तोड़कर उन्हें पुरुषों में संयुक्त कर देना, अपने लिए इच्छा वर तलाश कर लेने की छूट देना, स्त्री पुरुष का परस्पर सामान वर्ताव, नहीं नहीं (अपना कान पकड़कर) मैं भूल गई थी, पुरुषों से भी अधिक अधिकार देना, और एक पति मर जाए तब दूसरा और दूसरा मर जाए तो तीसरा कर लेने की स्वतंत्रता देना चाहती है। क्यों यही ना? तंतु एक बात कहना आप भूल गई। यदि पति नालायक निकले तो विवाह का ठेका तोड़कर दूसरा तीसरा कर लेना।"

"वेशक! वास्तव में! अवश्य! नि:संदेह!"

"परंतु आपके और मेरे विचारों मैं धरती आकाश का अंतर है। स्त्री शिक्षा से मेरा विरोध नहीं है बल्कि मैं उसकी बहुत आवश्यकता समझती हूं! हां! उसके प्रकारों में भेद है और सो भी बहुत भारी। आप उनको अंग्रेजी कि उच्च शिक्षा दिलाकर पुरुषों के समान बनाना चाहती है किंतु पुरुषों को आजकल जो शिक्षा मिल रही है वह जब उन्हीं