पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/८७

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"आप जिस तरह की शिक्षा पा रही हैं, क्षमा कीजिए,वह आपको बनाती नहीं बिगाड़ रही हैं । अच्छा बतलाइए आप क्या क्या खाना बनाना जानती हैं ? यदि आवश्यकता आ पड़े तो शाहद आपको बाजार से पूरी या बिस्कुट लेकर ही गुजारा करना पड़े। अलबता आप कर सकती है की एक अच्छा वावर्ची या रसोईया नौकर रख लेगी परंतु आपके पास इतना रुपया हीना हुआ तो फिर?"

"वेशक ! यह तो त्रुटि ही है । न मैंने कभी माता के कहने पर कान दिया और न अभी तक किताबें रखने के आगे उसे सीखने का समय मिला। मदरसे मैं तो इसका वास्ता क्या? किताबे देख देखकर शायद कुछ बना लेने की हिम्मत भी करूं तो चिल्ला फुगते फूंक दे धुए के मारे आंखें फूट जायं । पढ़ते-पढ़ते आंखें पहले ही कमजोर पड़ गई है। अच्छा अब सीखने का प्रयन करूंगी "

“अच्छी बात है परंतु कपड़ा सीना ? रंगना ? और कहाँ तक कहूँ, गृहस्थी के सैकड़ों काम हैं ! उन्हें लड़कियां घर में गुड़िया खेलते समय सीख लिया करती हैं। उन पर उस समय बोझा बिलकुल नहीं पढ़ता । अब आप जिस समय शादी करेंगी, बाल बच्चे होंगे तब अपके बड़ी मुशकिल पड़ेगी ।"

“हाँ मैंने यह भी बात मान ली कि पढ़ी लिखी स्त्रियाँ घर के धंधे से बिलकुल कोरी रहती हैं। उन्हें न तो इन