पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/८९

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चाचा तक को नीहारकर, आंखें मिलाकर न देखें और न कभी अपने लज्जा का बंधन तोड़कर पर पुरूष के सामने हो ।"

"अच्छा ! पुश्तक संबंधी शिक्षा तो ठीक ही है । अँगरेजी न पढ़ने से भी कुछ खाने नहीं। अंग्रेजी जब पराए देश की और किषृ भाषा है तब उसे पढ़ने से जो ज्ञान इस वर्ष में हो सकता है उसके लिए हिंदी में दो वर्ष बहुत है। परंतु क्या पति की वही गुलामी, पर्दे का वही जेलखाना? नहीं जीजी! ऐसा न कहो!"

“पर्दे से मेरा प्रयोजन यह नहीं है कि घर की चारदीवारी के भीतरिया कैद रक्खी जाए, बाहर की कमी उन्हें हवा तक ना लगे। जहां सब स्त्रियां ही स्त्रियां हो, जहाँ स्त्रियाँ भी नेक चलन इकट्ठो हुई हो और जहाँ पुरूषों की दृष्टि न पड़ती है। ऐसे स्त्री समाज में जाना में बुरा नहीं सभझती और अदब के साथ ढंकी गाड़ी में बैठकर बाहर की हवा खाने की विधि आवश्यकता होती है परंतु स्त्रियों खाना चाहिए प्रधान भूषण है और पर्दा ही उसकी रक्षा करने वाला इसलिए पर्दे को तोड़ना अच्छा नहीं। बल्कि मेरी राय तो यहां तक कि परदे के भीतर बचलन और तो तब को ना आने देना चाहिए। मेरी देवरानी हाल ही में इसे कष्ट उठा चुकी है।"

“खैर यह भी मान लिया परंतु पति की गुलामी अब हमसे नहीं हो सकती ! सैकड़ों वर्षों से गुलामी करते करते