पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/९३

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थेाड़े प्रतिवाद चाहे निकल भी आये परंतु पुरुष बिना उनका एक दिन भी गुजारा नहीं और जो इस बात का दम भरती हैं उन्हीं में बहुतेरी ऐंसी निकलेंगी जिनके लिये मैं क्या कहूँ ?हां जुदी बात हैं कि दूसरे की जोरू बनकर प्रसव वेदना के भय से विवाह न किया किंतु मान लीजिए कि जो एक ही जोरू नहीं बनना चाहतीं वो बहुत्तो की बन सकती हैं। इनमें प्रतिवाद भी हैं किंतु साधारण यही । ऐसा न करनेवाली कितनी ही आपके भ्रूणहत्या करनेवाली मिलेगी और उन्हें गर्भ न रहने की दवा भी टटोलनी पड़े तो आश्चर्य नहीं। संभव है कि किसी दिन यहाँ भी ऐसा अनाथालय खोलना पडे जिसमें व्यभिचारिणी स्त्री जाकर चुपचाप बच्चा जन आवें । ऐसी स्वतंत्रता को सष्टांग प्रणाम । ब्रह्मचर्य का पालन कर आजीवन अथवा अधिक वय तक कुमारिकाएं रहनेवाली वास्तव में पूजनीय हैं किंतु इस कलिकाल में यह एकदम असंभव, महा कठिन है ।"

"अच्छा ! परंतु सच्चा सुखी तो इसी में है कि अपनी इच्छा के अनुसार अपने लिये अनुकूल, सुदृढ़, नीरोग, विद्वान् और सज्जन पति तलाश करने का भार स्त्रियों पर रहे ओर यह तब ही हो सकता है जब पकी उम्र में उनकी शादी की जाय ।"

"वास्तव में सच्चा सुख ऐर गुणवान् पति मिलने ही में है परंतु अनुभवशून्य युवतियों पर पति ढूंढ़ने का भार