पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/९४

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डालना नितांत भूल है । सरासर पाप है। स्त्रियाँ पढ़ते पढ़ते यदि पचीस वर्ष भी कुँवारेपन में क्यों न निकाल डालें किंतु उनके माता पिता को जितना अनुभव है उतना क्या इससे आधा चैथाई भी उनके नहीं हो सकता है वे जैसे अच्छे घराने का, अच्छा विद्वान और अच्छे शील स्वभाववाला घर, तलाश कर उसकी जैसी जांच कर सकते हैं वैसी जाँच युवती कुमारिका से नहीं हो सकती और इसी लिये छठे महीने तलाक देने के लिये अदालत में दौड़े जाना पड़ता है ।"

"खैर ! यह भी मान लिया किंतु दक्षिण देश में मुरलियों के नाम से कितनी स्त्रियाँ आजन्म कुँवारी रहती हैं। वे मंदिरों को भेड़ बकरियां की तरह भेंट की जाती हैं। उनक क्या यह धर्म है ?"

“नहीं ! कदापि नहीं! यह धर्म के नाम से पाप है। केवल दक्षिण में ही नहीं । ऐसे ऐसे अनर्थ उत्तर में, अलमोड़ा की और भी होते हैं। यह पाय शीघ्र बंद होना चाहिए ।"

“अच्छा तो विवाह के लिये उमर कौन अच्छी है ?"

“मैं युवती विवाह को बहुत बुरा समझती हैं। जिन लोगों में अनाप शनाप दहेज देने की चाल है उनमें रुपए के अभाव से चालीस पचास वर्ष की उमर तक बहन बेटी के कुँवारी रखकर घोर अन्याय किया जाता है। जैसे प्राणी मात्र को किसी न किसी प्रकार की खुराक आवश्यक है वैसे स्त्री के लिए पुरुष के लिए स्त्री का संबंध एक प्रकार