पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/९७

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निषेध है। अपको यहि अवकाश हो तो "सुशीला विधवा" में मेरी फूफी का चरित्र पढ़ लेना ।"

“हां पढ़ा है। अच्छा है । वह यदि आपकी फ़ूफी हैं तो आए भी चरण छूने योग्य हो परंतु इस जमाने में विधवाओं का पेट भरना भी कठिन हो गया है।"

“हिंदू समाज अभी इतना नहीं डूबा है कि उनका पेट भरना कठिन हो जाय । भले घरों में वे अब भी पूजी जाती हैं। यदि उनका उपकार करना हो तो उनके पालन पोषण और चरित्र-रक्षा के लिये विधवाश्रम खोलिए। खुले भी हैं ।"

इस तरह बातें करते करते “अगरा फोर्ट की पुकार पड़ते ही इस रसशी में प्रियंवदा के चरण छूकर प्रणाम किया और अपने संदेह की निवृत्ति पर धन्यवाद देती हुई वह विदा हो गई ।