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आनन्द मठ


स्त्री है। एक दिन कल्याणोने उसे घरके भीतर बुलाया। नवीनानन्द भीतर आये। उन्होंने नौकरोंकी रोकथाम नहीं सुनी।

शान्तिने कल्याणीके पास आकर पूछा-"तुमने मुझे किस लिये बुलाया है?"

कल्याणी-“इस तरह कबतक मर्दाना वेश बनाये रहोगी? न मिलना-जुलना होता है, न बातचीत होती है। तुम्हें मेरे स्वामीके सामने अपना यह परदा हटाना पड़ेगा।"

नवीनानन्द बड़े फेरमें पड़ गये, बहुत देरतक चुप रहे, अन्तमें बोले,-"कल्याणी! इसमें अनेक विघ्न हैं।"

बस, दोनोंमें इसी विषयपर बातें होने लगी। नौकरोंने नवीनानन्दको भीतर जानेसे रोका था, उन्होंने महेन्द्रके पास जाकर खबर दी कि नवीनानन्द जबरदस्ती घरके अन्दर घुस गये हैं उन्होंने कोई रोक टोक नहीं मानी। यह सुनकर महेन्द्र बहुत विस्मित हुए और घरके अन्दर गये। उन्होंने कल्याणीके सोनेके कमरे में जाकर देखा कि नवीनानन्द घरमें एक ओर खड़े हैं और कल्याणी उनकी देहपर हाथ रखे, उनके बघछालेकी गांठ खोल रही है। महेन्द्र बड़े विस्मित, साथ ही क्रोधित भी हुए।

नवीनानन्दने उन्हें देख, हंसकर कहा-"क्यों गुसाई जी! एक सन्तानपर दूसरे सन्तानका अविश्वास कैसा?"

महेन्द्रने कहा-"क्या भवानन्दजी विश्वासपात्र थे?"

नवीनानन्दने आंखें तरेरकर कहा-“तो कल्याणी भवानन्दके शरीरपर हाथ रखकर उनके बघछालेकी गांठ भी नहीं खोलने गयी थी!" कहते कहते शान्तिने कल्याणीके हाथमें चुटकी भरी-उसे बघछाला नहीं खोलने दिया।

महेन्द्र--"इससे क्या हुआ?"

नवीना०-"आप मेरे ऊपर भले ही अविश्वास कर सकते हैं; पर कल्याणीपर क्योंकर अविश्वास कर सकते हैं?"