जिस बोल्शेविज्मकी धूम इस समय संसारमें मची हुई है, जिन बोल्शे- विकोका नाम सुनकर सारा यूरोप कांप रहा है उसीका यह इतिहास है। खारके अत्याचारों से पीड़ित प्रजा जारको गद्दी से हटानेमें कैसे समर्थ हुई, मज. और किसानोंने किस प्रकार जार-शाहीको उलटनेमें काम किया, उनकी क्या दशा है इत्यादि बातें जाननेको कौन उत्सुक नहीं है ! प्रजातन्त्र- राज्यकी महत्ताका बहुत ही सुन्दर वर्णन है । प्रजाकी मर्जी बिना राज्य नहीं बल सकता और रूस ऐसा प्रबल राष्ट्र भी उलट दिया जा सकता है, अत्या- बार और अन्यायका फल सदा बुरा होता है इत्यादि बातें बड़े सरल और नवीन तरीकेसे लिखी गयी हैं। लेनिनकी बुद्धिमत्ता और कार्यशैली पढ़कर दांतों तले अंगुली दबानी पड़ती है। किस कठिनता और अध्यवसायसे उसइसमें पंचायती राज्य स्थापित किया इसका विवरण पढ़कर मुर्दा दिल भी हाथो उछलने लगता है। १३६ पृ. की पुस्तकका मूल्य केवल 10 मात्र रखा गया है।
यह महात्मा टाल्स्टायकी संसार-प्रसिद्ध कहानियोंका हिन्दी अनुवाद है। परोपको कोई ऐसी भाषा नहीं है जिसमें इनका अनुवाद न हो गया हो। इन कहानियोंके जोड़की कहानियां सिवा उपनिषदोंके और कहीं नहीं है। इनकी भाषा जितनी सरल, भाव उतने ही गम्भीर है। इनका सर्वप्रधान गुण पह है कि ये सर्व-प्रिय है। धार्मिक और नैतिक भाव कूट कूटकर भरे है। विद्यालयोंमें छात्रों को यदि पढ़ाई जायें तो उनका बड़ा उपकार हो। किसानोंको बी इनके पाठसे बड़ा लाभ होगा । पहले भी कहींसे इनका अनुवाद निकला बा परन्तु सर्वप्रिय न होनेके कारण उपन्यास सम्राट् श्रीयुक्त प्रेमचन्दजी- हारा सम्पादित कराकर निकाली गयी हैं। सर्वसाधारणके हाथोतक यह पुस्तक पहुंच माय इसीलिये मूल्य केवल रक्खा गया है। ।