३० आनन्द मठ हिमकर निकर प्रकाशित रजनी, कुसुमित लता ललित छबिवारी॥ दिन मनि उदित मुदित मन पक्षी। विकसित कमल नयन सुखकारी ॥ महेंद्रने कहा-“यह देश है; माँ नहीं।" भवानंद बोले,-"हम लोग अन्य कोई माता नहीं जानते। 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी' जन्मभूमि ही हमारी माता है । हमारे मां नहीं, पिता नहीं, बन्धु नहीं, कलत्र नहीं, पुत्र नहीं, घर नहीं, द्वार नहीं-हमारी तो बस वही 'सजल सफल श्यामल थल सुदर मलय समीर चलय मनभावन' आदि गुणोंसे युक्ता सब कुछ हैं।" भवानंदके भावको समझकर महेंद्रने कहा-“अच्छा तो एक बार गाओ।" भवानंदने फिर गाना आरम्भ किया : बन्दौं भारत भूमि सुहावन । सजल सफल श्यामल थल सुन्दर, मलय समीर चलय मन भावन ॥ हिमकर निकर प्रकाशित रजनी, कुसुममित लता ललित छबिवारी । दिनमनि उदित मुदित मन पक्षी, विकसित कमल नयन सुखकारी ॥ तीस कोटि सुत जाके गजित, दुगुन करन करवाल उठाये कौन कहत तोहि अवला जननी, प्रबल प्रताप चहूं दिसि छाये॥ धर्म कर्म अरु मर्म तुही है,