पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१२७
खेती की पैदावार- भोज्य पदार्थ

खेती की पैदावार - भोज्य पदा १२७ के पकने के समय तेज़ धूप उतनी ही आवश्यक है। यदि पकने के समय गरमी न पड़े अथवा वायु में नमी आ जाय तो भी फसल को हानि पहुँचती है। यह अनाज उन प्रदेशों में भी उत्पन्न हो सकता है। जहाँ अत्यधिक ठंड पड़ती है परन्तु पकने के समय गरमी और सूखी हवा नितान्त आवश्यक है। यही कारण है कि रूस और कनाडा में जहाँ जाड़ा बहुत तेज होता है। गेहूँ की फसल उतने जाड़े में नहीं उत्पन्न की जाती वरन शीघ पकने वाली जाति का गेहूँ एप्रिल और कहीं कहीं मई में बोया जाता है और जूलाई तथा अगस्त में काट लिया जाता है। गेहूँ के लिए आदर्श जलवायु वह है जिसमें जाड़े में थोड़ी वर्षा हो और क्रमश: जैसे जैसे फसल पकने पर आवे हवा सूखी होती जावे और गरमी बढ़ती जावे | फसल पकते समय तथा कटते समय गरम और शुष्क मौसम का होना ज़रूरी है। गेहूँ की पैदावार के लिए अधिक वर्षा की ज़रूरत नहीं है। जिन प्रदेशों में इंच वर्षा भी होती है वहाँ भी गेहूँ की पैदावार की जा सकती है वैसे ३०" इंच वर्षा गेहूँ के लिए काफी है। गेहूँ बहुत प्रकार की भूमि पर पैदा होता है। किन्तु मटियार भूमि गेहूँ के लिए अधिक उपयुक्त है। अधिक कठोर भूमि पौधे के लिए अच्छी सिद्ध नहीं होती नरम मटियोर भूमि इसके लिए विशेष रूप से उपयुक्त है। गेहूँ की पैदावार उत्तर में बहुत दूर तक फैल गई है । कनाडा और रूस में ऐसी जाति का गेहूं उत्पन्न किया गया है जो लगभग १०० दिन में हो पक जाता है। अतएव उस गेहूँ को ठंडे मैदानों में गरमी के दिनों में उत्पन्न कर लेते हैं। रूस के कृषि विशारद तो ऐसा गेहूँ उत्पन्न करने का प्रयत्न कर रहे हैं जो उत्तरी ध्रुव के समीप वाले प्रदेश में भी उत्पन्न हो सके क्योंकि सोवियट रूस में बहुत सा उत्तरी भूभाग ठंडा होने के कारण बेकार पड़ा योरोप और एशिया संसार की सारी उत्पत्ति का लगभग दो तिहाई गेहूँ उत्पन्न करते हैं किन्तु रूस को छोड़ कर अन्य कोई देश गेहूँ बाहर नहीं भेजता क्योंकि इन देशों की आबादी घनी है। योरोप के लगभग सभी देशों (रूस को छोड़ कर ) और भारतवर्ष तथा चीन में खेती योग्य सारी भूमि को जोत डाला गया है अतएव वहाँ अधिक पैदावार की सम्भावना नहीं है। भविष्य में सायबेरिया, मंचूरिया (मंचकाफ़ ) संयुक्तराज्य अमेरिका, कनाडा, धर्जनटाइन, आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ही ऐसे देश हैं जहाँ गेहूँ को पैदावार बढ़ाई जा सकेगी क्योंकि यहां बहुत सी उपजाऊ भूमि बेकार पड़ी हुई है।