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आर्थिक-भूगोल

आथिक-भूगोल भूगोल शास्त्र की एक शाखा है।आर्थिक भूगोल कोई पृथक् शास्त्र नहीं है। यह भूगोल की एक शाखा मात्र है। इसका भूगोल की सभी शाखाओं से सम्बन्ध है। यही नहीं कि आर्थिक भूगोल को प्राकृतिक भूगोल शास्त्र की भूगोल. राजनीतिक भूगोल, तथा गणितात्मक (Mathematical Geography) से ही सम्बन्ध है वरन् उसका सम्बन्ध भूगर्भ शास्त्र (Geology) तथा ज्योतिष शास्त्र से भी है।

उदाहरण के लिए हम किसी देश के व्यापार का यदि अध्ययन करना चाहें तो हमें उस देश की बनावट, उसकी स्थिति, उसके समीपवर्ती प्रदेश तथा जलवायु का अध्ययन करना होगा और यह विषय प्राकृतिक भूगोल (Physical Geography) का है। किसी देश के निवासियों, राज्य संस्था तथा कानून इत्यादि का अध्ययन किये बिना हम वहाँ के आर्थिक भूगोल का अध्ययन नहीं कर सकते और यह विषय राजनैतिक भूगोल का है। भूगर्भ शास्त्र हमें धरातल की बनावट, खनिज पदार्थों, चट्टानों, और मिट्टी के बारे में जानकारी देता है जिनका मनुष्य जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। गणितात्मक भूगोल में हमें पृथ्वी के विस्तार, उसकी गति, ज्वार-भाटा (Tides) तथा समुद्र की धाराओं (Ocean Currents) का अध्ययन करते हैं जिनका हमारे समुद्री गमनागमन, जलवायु तथा वनस्पति पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

इनके अतिरिक्त, आर्थिक भूगोल को अर्थ-शास्त्र (Economics) समाज-शास्त्र (Socialogy) इतिहास (History) वनस्पति-शास्त्र (Botany) प्राणितत्व-शास्त्र (Biology) तथा रसायन-शास्त्र (Chemistry) से भी उपयोगी जानकारी प्राप्त होती है अतएव वह इन शास्त्रों से भी सहायता लेता है।

गैस की शक्ति, पानी की शक्ति, तथा वायु की शक्ति सभी जलवायु तथा धरातल की बनावट पर निर्भर हैं। इन्हीं बातों पर उद्योग-धंधों को उन्नति निर्भर है और उद्योग-धंधों पर ही व्यापार निर्भर है। अतएव यह स्पष्ट हो गया कि भौगोलिक परिस्थिति किसी देश की औद्योगिक उन्नति का मुख्य कारण है। आर्थिक भूगोल के विद्यार्थी को इन सभी समस्याओं का अध्ययन करना आवश्यक है। इन समस्याओं के अतिरिक्त हमें और भी समस्याओं का अध्ययन करना होगा। जैसे उजाड़ देशों को आबाद करने के कारण, एक देश से दूसरे देश में मनुष्यों के प्रवास का कारण, तथा भिन्न-भिन्न जातियों के