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आर्थिक भूगोल

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छोड़ती हैं वह धातुओं को ऊपर ले आता है। इस प्रकार प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रुप में ज्वालामुखी परिवर्तन ही संसार के अधिकांश खनिजपदार्थों को उत्पन्न करता है। साधारण धातु प्रत्येक युग की चट्टानों में मिलती हैं

परंतू. अधिक तर खनिज पदार्थ अनिमय (Igneous)तथा दानेदार (Crystalline ) चट्टानों में पाये जाते हैं।जिन चट्टानों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है उनमें खनिज पदार्थ नहीं होते । यही कारण है कि गङ्गवार ( Alluvial ) मिट्टी के मैदानों में धातुयें बहुत कम मिलती हैं।
    यह तो पहले ही बतलाया जा चुका है कि खनिज सम्पत्ति समाप्त होजाने वाली है । यह सम्भव है कि भविष्य में खाने खोदने की कला में उन्नतिहोने तथा कच्ची धातु ( Ore ) से धातु निकालने में कम व्यय होने के कारण सम्भव है कि अधिक गहराई के खनिज पदार्थों को निकालना लाभदायक हो जावे, किन्तु फिर भी अन्ततः खनिज पदार्थ समाप्त हो जावेंगे इसमें कोईसंदेह नहीं है। अतएव खानों का धंधा अस्थायी है।
   खान खोदने के धंधे में खान की गहराई महत्वपूर्ण है। जितनी हो खान गहरी होगी खनिज पदार्थ निकालने का व्यय उतना ही अधिक होगा।अधिक गहराई में गरमी अधिक होने से मजदूरों को काम करने में कठिनाई

होती है तथा हवा पहुँचाने की समस्या कठिन होती जाती है। अभी तकसंसार में जितनी भी खाने हैं उनको गहराई एक मील से अधिक नहीं है। जैसे जैसे खान गहरी होती जाती है गरमी बढ़ती जाती है यहाँ तक कि यदि खान दो मील गहरी हो तो हवा इतनी गरम हो जावेगी कि जितना खौलता हुआ पानी । मनुष्य बहुत देर तक १२०° फै० से अधिक सूखी गग्मी . नम गरमी को सहन नहीं कर सकता | खान खोदने के बन्धे मेंजो कुछ भी पूँजी होती है वह केवल खान के अन्दर रेल डालने तथाऊपर तक धातु को उठाने के लिए साधन उपलब्ध करने में लगतीहै। अतएव खान जितनी भी गहरी होगी पूँजी भी उतनी ही अधिकलगानी होगी। खानों को खोदना उतना कठिन नहीं हैं जितना कि धातु का उनस्पानों तक ले जाना जहाँ कि उनकी मांग है । अतएव खान खोदने का धंधा रेलवे लाइनों के ऊपर बहुत कुछ निर्भर है । पहाड़ी प्रान्तों में रेलों के न होनेसे बहुत सी खाने व्यर्थ पड़ी हैं। उनका उपयोग तब तक नहीं हो सकता जबतक कि गमनागमन ( Transportation ) के साधन वहाँ उपलब्ध न हो जावे