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आर्थिक भूगोल

आर्थिक भूगोल भाइरलैंड तथा योरोप के अन्य देशों में पहले जल के द्वारा ही कपड़े के कार- में कपड़ा तैयार होता था। आज भी मिसिसिपी नदी ( Mississippi ) के तट पर स्थित मिनियापोलिस ( Mineapolis ) नगर में आटे के बड़े कारखाने जल-शक्ति से ही चलते हैं । नार्वे, स्वीडन, तथा फिनलैंड में आज भी लकड़ी चीरने के कारखानों में जल-शक्ति का उपयोग होता है। परन्तु जल-शक्ति स्थायी नहीं होती। ठंडे देशों में जाड़े के दिनों में पानी जम जाता है तथा कहीं कहीं नदियाँ सूख जाती हैं। ऐसी दशा में कारखाने नहीं चल सकते । इसके अतिरिक्त पहाड़ी प्रान्त में जहाँ कि जल-शक्ति अधिक मिल सकती है, रेलपथ नहीं बन सकते, इस कारण भी जल-शक्ति का अधिक उपयोग नहीं हो सकता । मनुष्य ने केवल जल का ही उपयोग नहीं किया, हवा से भी उत्पादन कार्य में सहायता ली गई । यद्यपि हवा का उपयोग सब स्थानों पर नहीं हो सकता परन्तु जहाँ भी हवा तेज़ चलती है वहाँ हवा से ही कारखाने चलाये गये । हवा में अनन्त शक्ति है। उन्नीसवीं शताब्दी तक मनुष्य ने जहाजों के चलाने में हवा का ही उपयोग किया। हालैंड और बैलजियम के समुद्री तट पर आज भी पाटा पीसने के कारखाने हवा से ही चलते हैं। परन्तु हवा भी स्थायी रूप से नहीं बहती, कभी तेज़ तो कभी धीरे, इस कारण इसका भी अधिक उपयोग नहीं किया जा सकता। अत्यन्त प्राचीन काल से लकड़ी का ईंधन के रूप में उपयोग होता पाया है। जहां कोयला नहीं मिलता वहाँ आज भी लकड़ी के कोयले का उपयोग होता है। स्वीडन की रेलों के एंजिनों में लकड़ी जलाई जाती है। कांगों नदी की बेसिन में स्टीम बोट लकड़ी का ही उपयोग करती हैं। किन्तु लकड़ी भारी वस्तु है उसे ले जाने में व्यय अधिक होता है। इसके अतिरिक्त यदि शक्ति उत्पन्न करने में लकड़ी का अधिक उपयोग किया जाने लगे तो वन-प्रदेश समाप्त हो जाय । कोई भी देश अपने वन-प्रदेशों को इस प्रकार नष्ट नहीं कर सकता क्योंकि वे देश की आर्थिक उन्नति के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं । इन कारणों से लकड़ी का इस कार्य के लिए अधिक उपयोग नहीं किया जा सकता। कोयले का उपयोग मनुष्य समाज लगभग डेढ़ सौ वर्षों से करने लगा है। यन्त्रों के आविष्कार के साथ ही कोयले का भी कोयला (Coni) अयोग होने लगा। किन्तु उन्नीसवीं तथा बीसवीं शताब्दी में कोयला इतना महत्त्वपूर्ण हो गया कि संसार के अधिकांश यौद्योगिक केन्द्र कोयले की खानों के ही समीप दृष्टिगोचर .