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आर्थिक भूगोल के सिद्धान्त

आर्थिक भूगोल के सिद्धान्त - मनुष्य के मस्तिष्क पर भिन्न-मिन्न जलवायु का कैसा प्रभाव पड़ता है इसका ठीक ठीक अनुमान कर सकना कठिन है। जलवायु का फिर भी यह सब मानते हैं कि ठंडे जलवायु में मनुष्य मस्तिष्क पर हृष्टपुष्ट और चुस्त रहता है, और गरम जलवायु सुस्ती प्रभाष उत्पन्न करती है। गरमी में थोड़ा परिश्रम करने पर ही मनुष्य थक जाता है। इसके विपरीत ठंडी हवा मनुष्य के हृदय तथा मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करती है। मनुष्य जातियों की विचार-शक्ति में जो भिन्नता पाई जाती है वह उन जातियों के निवास- स्थान के जलवायु का ही असर है। यदि ऐसा नहीं है तो भिन्न जातियों में विचार शक्ति की समानता क्यों पाई जाती है। नम हवा का प्रभाव मस्तिष्क पर बुरा पड़ता है और शुष्क तथा ठंडी हवा मस्तिष्क के लिए लाभदायक है। यदि देखा जावे तो भिन्न-भिन्न देशों के निवासियों का स्वभाव उस देश के जलवायु के अनुसार ही बनता है। अंग्रेज लोग खेल-कूद बहुत पसंद करते हैं, क्योंकि इंगलैंड का मेघाच्छन्न आकाश सुस्त रहने वाले मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। पृथ्वी के पूर्वीय देशों में जो उदासीनता दृष्टिगोचर होती है तथा योरोपीय देशों और उत्तरीय अमेरिका में जो चंचलता का साम्राज्य है वह इन देशों की भिन्न जलवायु का ही फल है। स्काटलैंड के निवासियों में गम्भीरता, असीम-धैर्य, और कल्पना शक्ति का जो बाहुल्य दिखाई देता है वह वहाँ के कुहरे से परिपूर्ण जलवायु का ही प्रभाव है। इंगलैंड में गहरे रंगों का रिवाज़ न होने का कारण वहाँ के मेघाच्छन्न आकाश है, और भारतवर्ष जैसे गरम देश में जो तेज़ रंगों का इतना अधिक प्रचार है इसका कारण यहाँ की तेज धूप है। अमेरिका के प्रसिद्ध विद्वान् सीई. हंटिंगटन ने खोज के उपरान्त यह परिणाम निकाला है कि मनुष्य की शारीरिक शक्ति जल-वायु और ६०० से ६५० फै० गरमी में सबसे अधिक चैतन्य रहती मनुष्य की है, और मस्तिष्क सबसे अच्छा कार्य उस समय करता कार्य-शक्ति है जब बाहरी वायु का तापक्रम (Temperature) ३८० फै० हो । यदि कुहरा अधिक पड़ता है। अथवा तापक्रम सब मैदानों में एकसा रहता हो, या फिर तापक्रम में जल्दी-जल्दी परिवर्तन होता हो, तो मनुष्य की कार्य-शक्ति कम हो जाती है । जब वायु भीषण वेग से चलती है तो मनुष्य के हृदय में उत्तेजना फैलती है। थोड़े। . में हम कह सकते हैं कि जलवायु का मनुष्य की कार्य-शक्ति पर गहरा प्रभाव । पड़ता है।