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आर्थिक भूगोल के सिद्धान्त

आर्षिक भूगोल के सिद्धान्त हवा हानिकारक है, परन्तु घास के मैदानों पर सूखी हवा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वन प्रदेशों से हमें बहमूल्य लकड़ी मिलती है. जिस पर कागज़ दियासलाई, लाख, फर्निचर, खिलौने, वार्निश इत्यादि अनेक धंधे निर्भर हैं। . इसके अतिरिक्त वनों से और भी आवश्यक वस्तुयें मिलती हैं। वनों के कारण वर्षा अधिक होती है । नदियों में बाढ़ नहीं आती। वनों से खेती को लाभ पहुंचता है । संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि जंगलों का मनुष्य जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। घास के मैदान क्रमशः खेतों में परिणत हो गये और वे भिन्न-भिन्न फसलें उत्पन्न करते हैं जिन पर मनुष्य अपने भोजन तथा औद्योगिक कच्चे माल के लिए निर्भर है। ऊपर दिये हुये विवरण से यह तो ज्ञात हो ही गया होगा कि जलवायु पर ही मनुष्य का जीवन निर्भर है। उसके रहने का ढंग उसकी कार्य-शक्ति तथा उसकी आर्थिक उन्नति जलवायु पर ही अवलम्बित है। पृथ्वी पर अगणित जीव-जन्तु रहते हैं। मनुष्य भी इनके साथ ही रहता . है अतः उसे इनके द्वारा लाभ-हानि दोनों ही पहुंचा मनुष्य के जीवन करते हैं। कुछ तो ऐसे हैं जिनके बिना मनुष्य का पर जोष-जन्तुओं काम ही नहीं चल सकता । उन्हें हम "मित्र" कहेंगे, का प्रभाष और कुछ ऐसे हैं जो मनुष्य को हानि अधिक पहुंचाते हैं, उन्हें हम "शत्रु " कहेंगे। शेर, भेड़िया तथा अन्य जंगली जानवर मनुष्य के शत्रु हैं। बीमारी फैलाने वाली मक्खियां और कीड़े भी मनुष्य के कम शत्र भयंकर शत्रु नहीं हैं। इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे कोड़े भी हैं जो पेड़ों और फसलों को नष्ट कर देते हैं। गन्ना, कपास, गेहूँ रबर, चाय, अंगूर और कहवा की पैदावार बहुत से देशों में केवल इन कीड़ों के द्वारा ही कम हो गई। संसार में सबसे अधिक शराब बनाने वाला देश फ्रांस, फायलोक्सैरा ( Phyllo-xera) नामक कीड़े के कारण भयंकर आर्थिक स्थिति में फंस गया। फ्रांस के कृषि-शास्त्रियों को एक दूसरी ही अंगूर की बेल उत्पन्न करनी पड़ी तब जाकर शराब का धंधा नष्ट होने से बचा। इसी प्रकार कपास के कीड़े बालवीविल ( Bolweevil ) के कारण संयुक्तराज्य अमेरिका को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा था। यही नहीं चूहे. खरगोश, सियार, सुबर और बन्दरों के कारण खेती की कितनी हानि होती है, इसका अन्दाज़ा कर सकना कठिन है। आस्ट्रेलिया में खरगोशों के कारण एक विकट समस्या