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आर्थिक भूगोल

२५८ आर्थिक भूगोल से खींच सकता है। पहियेदार गाड़ी के उपयोग से अच्छे और मजबूत मार्गों की आवश्यकता पड़ी और सड़कों को बनाया गया । उन्नीसवीं शताब्दी में यांत्रिक गमनागमन के साधनों के आविष्कार के कारण मागों में फिर परिवर्तन हुआ है । मोटर बस ट्रैफिक के लिए साधारण मागी से काम नहीं चलता, बढ़िया और मजबूत सड़कों की आवश्यकता होती है। रेलों के लिए तो और भी अधिक मजबूत रेल भागौ की आवश्यकता पड़ती है। आज तो जलमार्ग भी अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गये हैं। जब से स्टीमशिप (भापद्वारा चलने वाले जहाज़ ) बनने लगे हैं तब से जलमार्गों का महत्व बहुत बढ़ गया है । जलमार्गों के बनाने में कुछ व्यय नहीं होता प्रकृति ने मार्ग की व्यवस्था कर दी है। हाँ जब नदियों को काट कर नहरें निकाली जाती हैं और उनका उपयोग व्यापारिक मार्ग के रूप में किया जाता है तब अवश्य मार्ग बनाने में व्यय होता है । क्रमशः वायुयानों द्वारा पाने जाने तथा माल ले जाने की सुविधा बढ़ती जा रही है। यद्यपि अभी वायुयानों का व्यापार के लिए अधिक उपयोग नहीं हो सका है। वायुयानों के लिए भी मार्ग बनाने में व्यय नहीं होता, त्राकाश ही उसका मार्ग है। गमनागमन के साधनों और व्यापारिक मार्गी के बनाने तथा उनके महत्व पर भौगोलिक परिस्थिति का विशेष प्रभाव पड़ता है। माल ले जाने के प्रत्येक देश अथवा भूभाग में कौन सा साधन काम में भिन्न भिन्न साधनों लाया जायेगा तथा व्यापारिक मार्ग का कितना उपयोग और व्यापारिक "हो सकेगा यह वहीं के धरातल की बनावट और जल- मार्गों पर भौगो वायु पर ही निर्भर रहता है। सड़कें अधिकतर मैदानों लिक स्थिति का में ही बनाई जाती हैं और पहाड़ी प्रदेशों में जो सड़कें प्रभा बनाई जाती हैं वे घाटियों में ही बनाई जाती हैं। पहाडी प्रदेश में सड़कों को बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि बहुत अधिक चढ़ाई और दरी को बचाया जाये नहीं तो सड़क बनाने में बहुत अधिक व्यय होता है। मैदानों में भी सड़कों को केवल इसलिए घुमा करके बनाया जाता है कि उससे नदी के ऊपर पुल बनाने के लिए उचित स्थान मिलने की सुविधा हो। सड़क बनाने के लिए कंकड़- पत्थर इत्यादि का उपयोग होता है और वह भी उस प्रदेश की धरातल की बनायट पर निर्भर है। रेलवे लाइनों के बनाने में भी ऊपर लिखी हुई बातों का ध्यान रखना ता है। रेलवे लाइनें भी अधिकतर मैदानों में ही बनाई जाती हैं। पहाड़ों में .