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व्यापारिक मार्ग तथा व्यापारिक केंद्र

व्यापारिक मार्ग तथा व्यापारिक केन्द्र २५६

रेलवे लाइन बनाने में बहुत कठिनाई और व्यय होता है। अधिकांश पहाड़ी रेलवे लाइनें नदियों की घाटियों में ही बनाई जाती हैं। जलवायु का भी व्यापारिक मार्गों पर कुछ, कम प्रभाव नहीं है। जिन प्रदेशों में वर्षा अधिक होती है और नदियों में बाढ़ अधिक आती है वहाँ सड़कों तथा रेलों को बनाने तथा उनको ठीक रखने में अधिक व्यय होता है। और जहाँ अधिक वर्षा तथा बाढ़ नहीं पाती वहाँ कठिनाई नहीं होती। जलमार्गों पर तो जलवायु का बहुत अधिक प्रभाव है। बहुत से समुद्र तथा जलमार्ग जाड़ों में जम जाते हैं इस कारया उनका व्यापार के लिए उपयोग ही नहीं हो सकता । नदियाँ और नहरें भी उन ठंडे प्रदेशों जाड़े के दिनों में बेकार हो जाती हैं । हवायें जहाज़ों के मार्ग को निर्धारित करती हैं। जब जहाज़ पालों के द्वारा चलते थे उस समय तो वे बिलकुल हवाओं के रुखं पर ही निर्भर रहते थे किन्तु भाप से चलने वाले जहाजों को भी हवाओं का ध्यान रख कर अपना मार्ग निर्धारित करना पड़ता है। ठंडे देशों में पृथ्वी के नीचे चलने वाली रेमें ट्राम तथा सड़कें बनाई जा सकती हैं किन्तु गरम देशों में यह सम्भव नहीं है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि धरातल की बनावट तथा जलवायु मार्ग किस ओर होकर जायेगा, मार्ग बनाने में कितना व्यय होगा तथा उसको ठीक रखने में कितना व्यय होगा निर्धारित करता है। यही नहीं धरातल की बनावट तथा जलवायु उस प्रदेश की पैदावार को भी निर्धारित करता है और भिन्न भिन्न प्रदेशों की पैदावार को ले जाने और लाने के लिए ही मार्गा' की आवश्यकता होती है। इस प्रकार भौगोलिक परिस्थिति का मार्गों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। माल ले जाने के भिन्न भिन्न साधन यद्यपि मनुष्य का उपयोग बोमा ढोने में बहुत कम हो गया है, परन्तु आज भी कुछ पहाड़ी प्रदेशों में मनुष्य ही माल ले मनुष्य जाने का मुख्य साधन है । भूमध्य रेखा के समीपवर्ती घने जंगलों और एशिया के हिमालय तथा अन्य पहाड़ी प्रदेशों में मनुष्य ही माल ले जाने का मुख्य साधन' है। एक मनुष्य केवल ३५ पौंड.बोझ लाद कर प्रतिदिन ६ या ७ मील के हिसाब से चल सकता हैं। मनुष्य अधिक बोमा नहीं ले जा सकता । इसी कारण उसका उपयोग केवल वहीं होता है जहाँ अन्य साधन उपलब्ध नहीं हैं।