पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/३०

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आर्थिक भूगोल के सिद्धान्त

आर्थिक भूगोल के सिद्धान्त निवास कर सकती है। चरवाहों की आबादी शिकारियों से अधिक धनी होती है। यदि चरागाह अच्छे होते हैं तब तो पशु चराने वाली जातियां वहाँ स्थायी रूप से रहती हैं, नहीं तो चारे की खोज में ये जातियाँ एक स्थान से दूसरे स्थान को चली जाती हैं। यही कारण है कि पशु चराने वाली नातियां अधिकतर एक स्थान पर नहीं रह सकती। जिन देशों की भूमि, जलवायु, तथा भौगोलिक परिस्थिति खेती बारी के अनुकूल है वहां की आबादी घनी तथा स्थायी खेती करने होती है । खेती के द्वारा थोड़ी सी भूमि पर भी वाली बहुत से मनुष्य निर्वाह कर सकते हैं। जितनी भूमि जातियाँ एक गाय के निर्वाह के लिये आवश्यक है उसी भूमि · पर अन्न के उत्पन्न करने से आठ मनुष्यों का पालन हो सकता है। अतएव प्रति वर्ग मील भूमि पर खेती करके अधिक मनुष्य निर्वाह कर सकते हैं। किसान का अपनी भूमि से इतना निकट का सम्बन्ध होता है कि वह अपनी भूमि को छोड़ कर नहीं जा सकता । खेती बारी के लिए उपजाऊ .. भूमि, यथेष्ट जल, और गरमी की आवश्यकता होती है। जिन प्रदेशों में ये तीनों ही बातें हों वहाँ खेती बारी खूब हो सकती है। कृषक जातियों को शिकारी तथा पशु चराने वाली जातियों की भांति भोजन के लिए प्रतिदिन की दौड़-धूप नहीं करनी पड़ती । इस कारण ये जातियाँ अवकाश का समय शिक्षा, साहित्य, कला, तथा अन्य विद्याओं को जानने में व्यय करती हैं। सच तो यह है कि सभ्यता का विकास तभी हुआ जब मनुष्य खेती-बारी करने लगा। खेती दो प्रकार की होती है, (१) गहरी खेती ( Intensive cultivation ) बिखरी खेती ( Extensive cultivation) यदि गहरी खेती वैज्ञानिक ढंग से की जावे तो उपज अधिक होती है और उस पर अधिक जनसंख्या : का निर्वाह हो सकता है । गहरी खेती का अर्थ यह है कि भूमि को खूब जुताई हो, खाद डाला जाय, सिंचाई का प्रबंध हो । उत्तम । बीज डाला जाय, तथा अत्यन्त सावधानी से खेती बारी की जाय । चीन अपनी असंख्य जनसंख्या का भरणपोषण केवल गहरी खेती ( Intensive cultivation ) के ही द्वारा कर रहा है। सच तो यह है कि चीन में खेती इतनी सावधानी से की जाती है कि यदि उनको खेत न कह कर बाग कहें तो अत्युक्ति न होगी। श्रा० भू०-३