पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/३८

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आर्थिक भूगोल के सिद्धान्त

आर्थिक भूगोल के सिद्धान्त के ही किसी स्थान विशेष पर पनप जाता है। एक बार जब कोई धन्धा कहीं चल पड़ता है तो क्रमशः उसके लिए वहाँ अनुकूल परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है। उदाहरण के लिए वहाँ उस धन्धे के लिए कुशल कारीगर उत्पन्न हो जाते हैं, और उस वस्तु की बिक्री के लिए वह एक मंडी बन जाता है। ऐसी ही दूसरी सुविधायें मिलने लगती हैं और उस धन्धे की वहाँ जड़ जम जाती है। अभ्यास के प्रश्न . १-श्रार्षिक भूगोल की परिभाषा (Definition) कीजिए और उसके क्षेत्र (scope ) की व्याख्या कीजिए। २-आर्थिक भूगोल के अध्ययन से व्यापार के विद्यार्थी, व्यापारी तथा उद्योगपतियों को क्या लाभ होता है। ३-"मनुष्य अपनी भौगोलिक परिस्थिति की उपज है" इस कपन की व्याख्या कीजिए और उदाहरण देकर समझाइए कि यह कहाँ तक ठीक है। ___४-धरातल को बनावट ( Relief ) का मनुष्य के आर्थिक प्रयत्नों (Economic activities) पर कहाँ तक प्रभाव पड़ता है ? . . ५-जलवायु का उद्योग-धंधों पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से क्या प्रभाव पड़ता है उसकी विवेचना कीजिए। ६-मनुष्य के आर्थिक प्रयत्नों और उसके स्वभाव पर जितना प्रभाव __ जलवायु का पड़ता है उतना किसी दूसरी बात का नहीं पड़ता। इस कथन . से आप कहाँ तक सहमत हैं।. -खेती और उद्योग-धंधे बहुत कुछ मिट्टी और जलवायु पर अवलम्बित हैं । इस कथन की व्याख्या कीजिए । __-किसी प्रदेश में लोग किस प्रकार रहते हैं क्या धंधा करते हैं उनकी कार्य-क्षमता कैसी है यह बिना कारण नहीं है इसको उस प्रदेश की भौगोलिक परिस्थिति ( Natural Environments ) निर्धारित करती है। . ए-नगर बसने के क्या कारण होते हैं ? १०-धंधों का स्थानीय कारण (Nationalisation of industries) किन मौगोलिक कारणों पर निर्भर है। प्रा० भू०-४