पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/३८८

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भारतवर्ष की प्रकृति

भारतवर्ष की प्रकृति ३७७ गीली भूमि सूखने पर सिकुड़ जाती है और उसमें बहुत सी दरारें पड़े जाती हैं। इसका काला रंग इसके कणों में लोहे के मिले रहने के कारण है । इस मिट्टी में चूना ( Calcium ) और मगनोसियम कर्बनेट ( Magnesium Carbonate ) यथेष्ट परिमाण में मिलते हैं। किन्तु नोषजन (Nitro. gen ) की इसमें भी कमी है। पानी के बहाव से वह कर आई हुई मिट्टी (allavial soil) भारत में सबसे अधिक पाई जाती है और यह अत्यधिक उपजाऊ है । सिंधु नदी से लेकर गंगा के कछार तक इस प्रकार को मिट्टी फैली हुई है। इसका क्षेत्रफल तीन लाख वर्ग मील है। प्रायद्वीप के दोनों किनारों पर यह ज़मीन कम या अधिक चौड़ाई में पाई जाती है। अधिकतर यह भूमि गोदावरी, कृष्णा और कावेरी के मुहानों और उनके प्रासपास फैली है। इस मिट्टी में स्फुरिक अम्ल ( Phosphoric acid ), 7997 ( Nitrogen ) a HAR ( Humus ) की कमी है किन्तु चूना और पोटाश काफी है। सिंघ गंगा के मैदान में सिंघ का कुछ हिस्सा उत्तर राजपूताना, पंजाब, संयुक्तप्रान्त, बिहार, बंगाल और आधा आसाम का भाग आ जाता है। इसकी पश्चिम में चौड़ाई ३०० मील और पूर्व में केवल ६० मील ही है । इस जमीन की गहराई १६०० फीट है और अधिकतर इसकी मिट्टी हिमालय से आती है। गंगवार भूमि ( Alluvial soil ) बहुत उपजाऊ होती है और खेती के लिए विशेष उपयोगी होती है। साधारण पानी से ही उसकी उपजाऊ शक्ति बहुत बढ़ जाती है। इस भूमि में नोषजन ( Nitrogen ) तो कम होता है किन्तु स्फुरिक अम्ल ( Phosphoric acid ) तथा पोटाश काफी होता है । चूना इसमें बहुत होता है । लेटराइट ( Laterite ) एक विशेष प्रकार की भूमि होती है । यह मिट्टी उपजाऊ नहीं होती । इस कारण इस पर खेती नहीं हो सकती । इसका रंग लाल होता है। यह मिट्टी मोटी होती है । इसमें पत्थर अधिक पाये जाते हैं। लेटराइट जमीन अधिकतर पहाड़ियों और पठारों के सिरे पर पाई जाती है । यह दक्षिण, मध्य भारत, मध्य प्रान्त, राजमहल, उड़ीसा, दक्षिण : बम्बई, मालाबार तथा प्रासाम में पाई जाती है । इस जमीन में पोटाश, स्फुरिक अम्ल ( Phosphoric acid) और चूना कम होता है विन्तु ह्यूमस अधिक होता है। इस ज़मीन में तेजाब अधिक होता है। इस जमीन में खेती करने के लिए खाद देने के अतिरिक्त इसमें तेज़ाब को कम करने की आवश्यकता होती है। प्रा० भू०-४६