पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/३९

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दूसरा परिच्छेद

दूसरा परिच्छेद पृथ्वी के धरातल की बनावट (Relief) और मिट्टी (Soil) पृथ्वी का क्षेत्रफल लगभग १६७० लाख वर्ग मील है। इसमें लगभग एक चौथाई सूखी भूमि ५४० लाख वर्ग मील है और शेष समुद्र है । १४३० लाख वर्ग मील सूखी भूमि का लगभग दो तिहाई उत्तरी गोलाद्ध (Northern Hemisphere) में है और शेष एक तिहाई दक्षिणी गोलाई (Southern Hemisphere) में है । सूखी भूमि के इस असमान वितरण का परिणाम यह हुआ कि मनुष्य की उन्नति उत्तरी गोलार्द्ध में ही अधिक हुई और वहीं वह अधिक फला फूला । उत्तरी गोलार्द्ध में जो भी सूखी भूमि के भूभाग हैं वे एक दूसरे से मिले हुए हैं। किन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका, तथा आस्ट्रेलिया एक दूसरे, के बीच में महासागर लहराते हैं इस कारण वे एक दूसरे के बहुत दूर पड़ गये हैं। यही नहीं दक्षिणी महाद्वीप भी (Continents) उत्तरी गोलाद्ध के भूभागों से मिले हुये हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में ८० प्रतिशत सूखी भूमि, ३०० तथा ६०० उत्तर रेखाओं के बीच में स्थित है, इस कारण ठंडे तथा बदलने वाले जलवायु के कारण यहाँ मनुष्य उद्यमी और पुरुषार्थी होता है । परन्तु दक्षिणी गोलार्ध की सूखी भूमि की जलवायु इतनी गरम और एक सी है कि मनुष्य के लिये वा अधिक उन्नति कर सकना कठिन है। धरातल का रूप सब जगह एक सा नहीं है। कहीं गगनचुम्बी ऊँचे पहाड़ हैं तो कहीं ऊँचे पठार (Plateau) कहीं नदियों को घाटिया (Valley) तो कहीं नीचे और चौरस मैदान दिखलाई पड़ते हैं। धरातल के यह भिन्न भिन्न स्वरूप पृथ्वी में होने वाले परिवर्तनों अथवा जलवायु के बने हैं। पृथ्वी में दो प्रकार के परिवर्तन होते हैं। एक तो इतना धीरे होता है कि जिसका मनुष्य को प्राभास तक नहीं मिलता। उदाहरण के लिये पृथ्वी के कुछ भाग क्रमशः स्वयं ही ऊँचे उठते जा रहे हैं और कुछ भाग नीचे होते जा रहे हैं। दूसरे प्रकार का परिवर्तन भूकम्पों अथवा ज्वालामुखी विस्फोट के कारण होता है। इनके द्वारा धरातल में यकायक भयंकर परिवर्तन हो जाते हैं। जलवायु के द्वारा धरातल में जो परिवर्तन होते हैं वे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। यदि देखा जाय तो धरातल को आधुनिक रूप देने में वर्षा, जल, वायु, धूप तथा वृक्षों का अधिक हाथ रहा है । नदियां पहाड़ों को काट काट कर घाटियाँ बनाती