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आर्थिक भूगोल

बार्षिक भूगोक्ष किन्तु इन खानों से बहुत थोड़ा पैट्रोलियम निकलता है। इन खानों की औसत वार्षिक उत्पत्ति ३० लाख गैलन है। कुछ वर्षों से इन खानों की उत्पत्ति कम हो गई है। इनमें अटक की खानें महत्वपूर्ण हैं। आसाम में खासी, जयन्तिया पहाड़ियों के दक्षिण तथा उत्तर पूर्व आसाम में तेल की खाने हैं। इनमें लखीमपुर जिले की डिगबोई की खाने विशेष महत्वपूर्ण हैं। इनके अतिरिक्त बदरपुरा तथा मसीमपूर की खानों से भी पैट्रोल निकाला जाता है। श्रासाम में लगभग ७ करोड़ गैलन पैट्रोल की वार्षिक उत्पत्ति होती है। श्रासाम की खानों की उत्पत्ति क्रमशः बढ़ रही है । आसाम की खानों में पैट्रोल के अतिरिक्त चिकना करने वाला तेल ( Lubricating) मोम ( Batch. ing oil ) तथा मिट्टी का तेल ( Kerosene ) निकलता है । अासाम की तेल की खानों का तेल बहुत घटिया होता है। यहाँ का मोम बहुत बढ़िया होता है। इस मोम की मोम बत्तियाँ बनाई जाती हैं और इङ्गलैंड भेजा जाता है। भारतवर्ष में मिट्टी के तेल तथा पैट्रोलियम की बहुत कमी होने के कारण तेल तथा पैट्रोलियम अधिकतर बाहर से ही आता है। जहाँ प्रकृति ने भारतवर्ष को कोयले तथा पैट्रोल की दृष्टि से निर्धन बनाया है वहाँ उसने भारतवर्ष में जल विद्युत् को उत्पन्न करने जल-विद्युत् के साधन उपलब्ध करके इस कमी को पूरा कर दिया ( Hydro है। भारतवर्ष जल -विद्युत् की दृष्टि से अत्यन्त धनी Electricity ) है किन्तु अभी तक यहाँ जल-विद्युत् अधिक उत्पन्न नहीं की गई है। इसका मुख्य कारण यह है कि देश श्रौद्योगिफाउन्नति को दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। जल विद्यत् को उत्पन्न करने के लिये तीन बातों की आवश्यकता है। (१) अधिक वर्षा (२) जल-प्रपात (३ ) सत्र मौसमों में एक सी धार का होना । जल-विद्युत् के उत्पन्न करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि बहुत ऊंचे से ही पानी गिरता हो । पानी का वज़न तथा वह जिस ऊँचाई से गिरता है उस पर ही बिजली निर्भर होती है। यदि १००० पौंड पानी १०० फीट की ऊँचाई से गिरता है तो वह उतनी ही बिजली उत्पन्न करेगा जितना १०० पौंड पानी १००० फीट की ऊँचाई से अथवा १०,००० पौड दस फिट की ऊँचाई से गिर कर उत्पन्न करता है। पानी तेजी से बहता है अथवा धीरे वहता है। इसका बिजली की उत्पत्ति पर कोई असर नहीं परता। भारतवर्ष के बहुत से भागों में वर्षा यथेष्ट होती है। श्रासाम, हिमालय,